Biology, asked by sanjaydurg123, 9 months ago

जीवों के विकास के सिद्धांत के मुख्य बिन्दु क्या हैं?

Answers

Answered by yuvrajkarle12345
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Answer:

1.वर्गीकरण -

2.लुप्त कड़ियाँ

3.अवशेष अंग

4.तुलनात्मक भ्रौणिकी (

5.तुलनात्मक शरीररचना -

6.पुनरुभ्दव

Explanation:

1.वर्गीकरण -

जीवों के ऊँची और नीची कई श्रेणियों में विभाजित किया गया है। इतना चढ़ाव और उतराव विकास के बिना संभव नहीं है।  

भूविज्ञानी अभिलेख (Geological Record)--चट्टानों से उपलब्ध जीवों के जीवाश्म यह बताते हैं कि सरल या निम्न श्रेणी के जीव पहले उत्पन्न हुए और जटिल या उच्चश्रेणी के जीव बाद में। इस तथ्य की व्याख्या केवल विकासवाद द्वारा ही की जा सकती है।

2.लुप्त कड़ियाँ (Missing Links)-

ऐसे उदाहरण मिले हैं जो दो जीव श्रेणियों के मध्य के हैं। बैवेरिया में पाया जानेवाला आर्किओप्टेरिक्स (Archaeopteryx) नामक जीवाश्म आधा पक्षी है और आधा सरीसृप (reptile)। पक्षियों की भाँति उसमें डैने तथा चोंच है, परंतु सरीसृप की भाँति उसमें लंबी पूँछ और मुँह में दाँत हैं, जो वर्तमान पक्षियों में सर्वथा अनुपस्थित हैं। ऐसा ही उदाहरण आस्ट्रेलिया का प्लैटिपस (Platypus) है, जो अधिकांश गुणों में स्तनी जंतुओं से मिलता है पर अंडे देने में पक्षी से।  

3.अवशेष अंग (Vestigialorgans)-

कुछ जंतुओं में ऐसे अंग भी विद्यमान है जिनका उन जंतुओं के लिये आज कोई उपयोग नहीं है, परंतु उन्हीं अंगों का दूसरे जंतुओं में उपयोग है और वे पूर्ण रूप से परिवर्धित (developed) हैं। उदाहरणार्थ मनुष्य की कान की मांस-पेशियाँ, जिनका अब कोई उपयोग नहीं है, आज भी उपस्थित हैं, किंतु अक्रियाशील हैं, परंतु दूसरे स्तनी जंतुओं में ये मांसपेशियाँ क्रियाशील हैं और कानों को घुमाने फिराने का काम करती हैं। इसी प्रकार का अवशेष अंग मनुष्य के पाचक नाल में उंडुक (appendix) होता है। ऐसे अवशेष अंगों की उपस्थिति की व्याख्या विकासवाद से सरलता से हो जाती है। उपयोग में न आनेवाले अंग या तो पूर्णतया नष्ट हो गए अथवा खंडहर के रूप में वर्तमान रहते हैं।  

4.तुलनात्मक भ्रौणिकी (Comparative Embryology)-

भ्रूणावस्था में उच्च श्रेणी के जंतुओं का भ्रूण उन्हीं अवस्थाओं से होकर गुजरता है जिनसे निम्न श्रेणी के जंतुओं का भ्रूण गुजरता है। प्रारंभिक अवस्थाओं में मनुष्य, पक्षी, सरीसृप, मेढक और मछली के भ्रूणों में कई सादृश्य होते हैं।  

5.तुलनात्मक शरीररचना -

विभिन्न जंतुओं की शरीररचना में इतना सादृश्य है कि डारविन को कहना पड़ा कि इन जंतुओं की अलग अलग उत्पत्ति होना असंभव जान पड़ती है।  

6.पुनरुभ्दव (Reversion or Atavism)-

जंतुओं में बहुधा कुछ ऐसे गुण एकाएक उत्पन्न हो जाते हैं जो उनके लिये अनुपयोगी हैं, जैसे नवजात शिशु में कभी कभी छोटी पूछँ का पाया जाना। इससे यही सिद्ध होता है कि मनुष्य के पूर्वज दुमदार थे और प्रकृति की किसी त्रुटि से यह पूर्वज लक्षण मानव शिशु में पलट आता है।  

उपर्युक्त प्रमाणों के अतिरिक्त और भी, जैसे कायिकी, फॉसिल वैज्ञानिकी, भौगोलिक वितरण, अभिजनन, आदि से प्राप्त प्रमाण हैं जो बड़े स्पष्ट रूप से विकास के पक्ष में ही संकेत करते हैं।

Answered by sapna244439
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Answer

जिवो के विकास के सिध्दान्त के मुख्य बिन्दु निम्नलिखित है-

1.जीवो मे विविधता पाइ जाती हैं।

2.विश्व मे प्रजातियो कि रचना पहले से मौजुद प्रजातियो से होती है।

3.विविध जीवो के उत्पत्ति एकसमान पुर्वज से हुई है।

4.प्रत्येक प्राणी अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिये कुछ खास विभिन्नताए रखती हैं।

5.विभिन्न प्राणियो मे लाभदायक विभिन्नताए विशेष स्थान रखती है।

6. विश्व प्रजाती, पुर्व मे उपस्थित प्रजातियो से हुई है।

7.विभिन्नता एक पिढी से दुसरी पिढी मे जाती है।

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