जैव प्रौद्योगिकी को परिभाषित कीजिये। कृषि के क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी के महत्व को दर्शाने वाले कोई दो उदहारण दीजिये।
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जैवप्रौद्योगिकी या जैवतकनीकी तकनीकी का वो विषय है जो अभियान्त्रिकी और तकनीकी के डाटा और तरीकों को जीवों और जीवन तन्त्रों से सम्बन्धित अध्ययन और समस्या के समाधान के लिये उपयोग करता है। इसे रासायनिक अभियान्त्रिकी, रसायन शास्त्र या जीव विज्ञान में संबंधित माना जाता है। जैव प्रौद्योगिकी लागू जीव विज्ञान के एक क्षेत्र है कि अभियान्त्रिकी, प्रौद्योगिकी, चिकित्सा और अन्य जैव-उत्पाद(Bio-Products) आवश्यकता क्षेत्रों में रहने वाले जीवों और बायोप्रोसेस (Bio-processes) का इस्तेमाल शामिल है।
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जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग
हरित क्रान्ति द्वारा खाद्य आपूर्ति में तिगुनी वृद्धि में सफलता मिलने के बावजूद मनुष्य की बढ़ती जनसंख्या का पेट भर पाना सम्भव नहीं है। उत्पादन में वृद्धि आंशिक रूप से उन्नत किस्मों की फसलों के उपयोग के कारण हैं जबकि इस वृद्धि में मुख्यतया उत्तम प्रबन्धकीय व्यवस्था और कृषि रसायनों का प्रयोग एक कारण है। हालांकि विकासशील देशों के किसानों के लिये कृषि रसायन काफी महंगे पड़ते हैं व परम्परागत प्रजनन के द्वारा निर्मित किस्मों से उत्पादन में वृद्धि सम्भव नहीं है। तुम पिछले अध्याय में जैव प्रौद्योगिकी जिसके बारे में पढ़ चुके हो, उसमें मुख्यतया आनुवंशिक रूप से रूपान्तरित सूक्ष्मजीवों, कवक, पौधों व जन्तुओं का उपयोग करते हुए जैव भैषजिक व जैविक पदार्थों का औद्योगिक स्तर पर उत्पादन किया जाता है।
जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग चिकित्साशास्त्र, निदानसूचक, कृषि में आनुवंशिकतः रूपान्तरित फसलें, संसाधित खाद्य, जैव सुधार, अपशिष्ट प्रतिपादन व ऊर्जा उत्पादन में हो रहा है। जैव प्रौद्योगिकी के तीन विवेचनात्मक अनुसन्धान क्षेत्र हैं-
(क) उन्नत जीवों जैसे-सूक्ष्मजीवों या शुद्ध एंजाइम के रूप में सर्वोत्तम उत्प्रेरक का निर्माण करना।
(ख) उत्प्रेरक के कार्य हेतु अभियांत्रिकी द्वारा सर्वोत्तम परिस्थितियों का निर्माण करना, तथा
(ग) अनुप्रवाह प्रक्रमण तकनीक का प्रोटीन/कार्बनिक यौगिक के शुद्धीकरण में उपयोग करना।
अब हम पता लगाएँगे कि मनुष्य जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग विशेष रूप से स्वास्थ्य व खाद्य उत्पादन के क्षेत्र में जीवनस्तर के सुधार में किस प्रकार से लगा हुआ है।
कृषि में जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग
खाद्य उत्पादन में वृद्धि हेतु हम तीन सम्भावनाओं के बारे में सोच सकते हैं-
(क) कृषि रसायन आधारित कृषि
(ख) कार्बनिक कृषि और
(ग) आनुवंशिकतः निर्मित फसल आधारित कृषि।
हरित क्रान्ति द्वारा खाद्य आपूर्ति में तिगुनी वृद्धि में सफलता मिलने के बावजूद मनुष्य की बढ़ती जनसंख्या का पेट भर पाना सम्भव नहीं है। उत्पादन में वृद्धि आंशिक रूप से उन्नत किस्मों की फसलों के उपयोग के कारण हैं जबकि इस वृद्धि में मुख्यतया उत्तम प्रबन्धकीय व्यवस्था और कृषि रसायनों (खादों तथा पीड़कनाशिकों) का प्रयोग एक कारण है। हालांकि विकासशील देशों के किसानों के लिये कृषि रसायन काफी महंगे पड़ते हैं व परम्परागत प्रजनन के द्वारा निर्मित किस्मों से उत्पादन में वृद्धि सम्भव नहीं है। क्या ऐसा कोई वैकल्पिक रास्ता है जिसमें आनुवंशिक जानकारी का उपयोग करते हुए किसान अपने खेतों से सर्वाधिक उत्पादन ले सकेंगे? क्या ऐसा कोई तरीका है जिसके द्वारा खादों एवं रसायनों का न्यूनतम उपयोग कर उसके द्वारा पर्यावरण पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभावों को घटा सकते हैं? आनुवंशिकतः रूपान्तरित फसलों का उपयोग ही इस समस्या का हल है।
ऐसे पौधे, जीवाणु, कवक व जन्तु जिनके जींस हस्तकौशल द्वारा परिवर्तित किये जा चुके हैं। आनुवंशिकतः रूपान्तरित जीव (जेनेटिकली मोडीफाइड ऑर्गेनाइजेशन) कहलाते हैं। जीएमओ का व्यवहार स्थानान्तरित जीन की प्रकृति, परपोषी पौधों, जन्तुओं या जीवाणुओं की प्रकृति व खाद्य जाल पर निर्भर करता है। जीएम पौधों का उपयोग कई प्रकार से लाभदायक है। आनुवंशिक रूपान्तरण द्वारा-
(क) अजैव प्रतिबलों (ठंडा, सूखा, लवण, ताप) के प्रति अधिक सहिष्णु फसलों का निर्माण
(ख) रासायनिक पीड़कनाशकों पर कम निर्भरता करना (पीड़कनाशी-प्रतिरोधी फसल)
(ग) कटाई पश्चात होने वाले (अन्नादि) नुकसानों को कम करने में सहायक
(घ) पौधों द्वारा खनिज उपयोग क्षमता में वृद्धि (यह शीघ्र मृदा उर्वरता समापन को रोकता है)
(ङ) खाद्य पदार्थों के पोषणिक स्तर में वृद्धि; उदाहरणार्थ-विटामिन ए समृद्ध धान उपरोक्त उपयोगों के साथ-साथ जीएम का उपयोग तद्नुकूल पौधों के निर्माण में सहायक है, जिनसे वैकल्पिक संसाधनों के रूप में उद्योगों में वसा, ईंधन व भेषजीय पदार्थों की आपूर्ति की जाती है।
कृषि में जैव प्रौद्योगिकी के उपयोगों में जिनके बारे में तुम विस्तृत रूप से अध्ययन करोगे; वह पीड़क प्रतिरोधी फसलों का निर्माण है जो पीड़कनाशकों की मात्रा को कम प्रयोग में लाती है। बी.टी. (Bt) एक प्रकार का जीवविष है जो एक जीवाणु जिसे बैसीलस थुरीजिएंसीस (संक्षेप में बीटी) कहते हैं, से निर्मित होता है। बीटी जीवविष जीन जीवाणु से क्लोनिकृत होकर पौधों में अभिव्यक्त होकर कीटों (पीड़कों) के प्रति प्रतिरोधकता पैदा करता है जिससे कीटनाशकों के उपयोग की आवश्यकता नहीं रह गई है। इस तरह से जैव-पीड़कनाशकों का निर्माण होता है। उदाहरणार्थ-बीटी कपास, बीटी मक्का, धान, टमाटर, आलू व सोयाबीन आदि।