जीवाश्म किसे कहते हैं एवं इसका काल निर्धारण कैसे किया जाता है
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सामान्य: जीवाश्म शब्द से अतीत काल के भौमिकीय युगों के उन जैव अवशेषों से तात्पर्य है जो भूपर्पटी के अवसादी शैलों में पाए जाते हैं। ये जीवाश्म यह बतलाते हैं कि वे जैव उद्गम के हैं तथा अपने में जैविक प्रमाण रखते हैं।
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किसी समय जीवित रहने वाले अति प्राचीन सजीवों के परिरक्षित अवशेषों या उनके द्वारा चट्टानों में छोड़ी गई छापों को जो पृथ्वी की सतहों या चट्टानों की परतों में सुरक्षित पाये जाते हैं उन्हें जीवाश्म (जीव + अश्म = पत्थर) कहते हैं। जीवाश्म से कार्बनिक विकास का प्रत्यक्ष प्रमाण मिलता है। इनके अध्ययन को जीवाश्म विज्ञान या पैलेन्टोलॉजी कहते हैं|
जीवाश्म की आयु रेडियो कार्बन डेटिंग की सहायता से ज्ञात की जाती है।
Explanation:
1. जीवों की मृत्यु के पश्चात उनके शरीर का अपघटन हो जाता है और वह समाप्त हो जाता है | परंतु कभी कभी जीव या उसके कुछ भाग ऐसे वातावरण में चले जाते हैं जिसके कारण इनका अपघटन पूरी तरह नहीं हो पाता, जीवों के इस तरह के परिरक्षित अवशेष जीवाश्म कहलाते हैं।
(a) जीवाश्म विश्व के प्राचीन भूगोल के निर्माण में मदद करते हैं |
(b) विकासीय संबंध स्थापित करने में जीवाश्म महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं|
(c) जीवाश्म विज्ञान प्राकृतिक वैज्ञानिक संकेतकों से अतीत की जलवायु का अध्ययन करता है!
2. रेडियो कार्बन डेटिंग तकनीक द्वारा। वातावरण में कार्बन के तीन समस्थानिक पाये जाते हैं। C-12, C-13, तथा C-14, यहाँ ये संख्याये कार्बन के आण्विक भार को इंगित कर रही है । इन तीनो में C-14 एक रेडियोएक्टिव समस्थानिक है अर्थात यह रेडियोएक्टिव किरणों का उत्सर्जन करता है। इसकी अर्ध आयु 5730 वर्ष होती है। हमारे शरीर में कार्बन के ये तीनो समस्थानिक उपापचय की क्रियाओं के फलस्वरूप वातावरण से शरीर तथा शरीर से वातावरण में संचारित होते रहते है। जब किसी जीव की मृत्यु होती है तो यह संचरण रुक जाता है और ये समस्थानिक शरीर में एकत्र रह जाते है। C -14 रेडियो एक्टिव होने के कारण इसका क्षरण होता रहता है और C-14 की जीवाश्म में शेष मात्रा और इसकी अर्द्ध आयु के आधार पर उस जीवाश्म की आयु का आकलन किया जाता है।
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