Hindi, asked by arpitasaraswat, 6 months ago

जीवन एक यथार्थ है उसे जीना धर्म है धर्म की पूर्णता इसी में है कि हम इसे सच्चे अर्थों में जीए अपने लिए तो पशु भी जीते हैं मानव जीवन का अर्थ है मानवता की रक्षा के लिए जीना तथा जिंदगी के अमृत और विष दोनों का पान करना कष्टों से घबराकर भाग ना तो जीवन से पलायन करना है विधाता की नजर टेढ़ी करना है सच पूछो तो जीवन एक साधना है तथा जीवन जीने वाला एक तपस्वी है समय रूपी यज्ञ में कर्म रूपी आहुतियां डालते जाओ तो सफलता भाग्यश्री एक लक्ष्मी की प्राप्ति निश्चित है |

विधाता की नजर कब टेढ़ी हो सकती है​

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Mycobacterium tuberculosis (M. tb) is a species of pathogenic bacteria in the family Mycobacteriaceae and the causative agent of tuberculosis. First discovered in 1882 by Robert Koch, M. tuberculosis has an unusual, waxy coating on its cell surface primarily due to the presence of mycolic acid.

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मनुष्य जीवन का लक्ष्य क्या होना चाहिए

पहले तो हम ये समझने की कौशिश करे क्यों हमें मनुष्य जन्म मिला है, किसकी कृपा से किसका अनुग्रह से हमें ये मनुष्य जन्म मिला है। जरा सोचिये, एक आदमी नौकरी के तलाश रहा था, काफी Interview में भी योगदान दिया मगर बहुत दिन हो गया नौकरी नहीं मिला, ४ - ५ साल के बाद एक बहुत बदिया कम्पनी में उसको नौकरी के लिए बुलाया गया। और पहेले दिन ही उसके उपरवाले ने समझा दिया " अगर नियम के अनुसार आपना काम काज करोगे, अपने ऊपर वाले को उचित सम्मान देकर उन्हें समझने की कौशिश करोगे, और समझाने की कौशिश करोगे, व्यवस्थित तरीके से सारे काम करोगे, अपने निचे वाले से ताल मेल बना कर उनकी तरक्की के वारे में सोच कर चलोगे, किसीसे झगडा या शिकायत नहीं करोगे तो तुम्हारा येहाँ पे बहुत तरक्की हो सकता है। अपने अधिकारक्षेत्र का उलंघन नहीं करना, अपने कर्तव्य और दायित्व का पालन करना। नहीं तो कोई तरक्की नहीं हो पायेगा। यही हाल हम सब मनुष्य का भी है। लोग कहते है हमारा जीवन का उद्देश्य डॉक्टर बनना , कोई कहता है मै इंजिनियर बनूँगा, कोई कुछ बनना चाहता है। आसल में यह सब तो सिर्फ साधन है, साद्ध्य नहीं केवल मात्र सीडी है लक्ष्य नहीं। हामारे शास्त्रों में बहुत ही अछि तरह से उल्लेख किया है मनुष्य जीवन का उद्देश्य है भगवद प्राप्ति, और कुछ नहीं। अब प्रश्न ये उठता है कैसे करे भगवद प्राप्ति? इसीलिए हमारे शास्त्रों में चार पुरुषार्थ की बात कही है। जिससे हमें भगवद प्राप्ति हो सके। वे है धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। शास्त्रों में ऐसा नहीं लिखा अर्थ काम, धर्म फिर मोक्ष, वहाँ पर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इसी श्रृंखला में ही लिखा है। मतलब किया हुआ जिंदगी में सबसे पहले धर्म को अपनाना होगा, यानी धर्म क्या है वो जान्ने के बाद धर्म को आचरण में में उतार न होगा। उसको जानने के लिए हमें शास्त्रों का शरण में जाना पड़ेगा। धर्म की व्याख्या, परिभाषा विभिन्न तत्त्वदर्शियों ने विभिन्न प्रकार से की है। भारतीय दर्शन में धर्म के लक्षणों की विशद चर्चा हुई है। विभिन्न शास्त्रकारों के मत से धर्म के लक्षण एक नहीं हैं। भारत में उनके लक्षणों की संख्या अलग-अलग बतायी जाती रही है। उनमें अनेकता विद्यमान है।

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