जीवन जीवन में त्योहारों का महत्व संकेत बिंदु 1)-प्रस्तावना 2)-नीरसता के भागने वाला 3)-संस्कृत की परिचायक 4)- समरसता बहाने वाला 5)-उप संघार पर 300 शब्दों का निबंध लिखिए
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त्योहारों से हमारे जीवन में परिवर्तन और उल्लास का संचार होता है। त्योहार किसी भी जाति और देश उसके अतीत से सम्बन्ध जोड़ने का भी उत्तम साधन हैं। जीवन में पग पग पर आने वाली कठिनाइयों तनाव और पीड़ा को भुलाने का साधन भी त्योहार ही हैं। यही कारण है कि त्योहारों के अवसर सभी मानव हर्ष से झूम उठते हैं।
प्रस्तावना- हमारे जीवन में त्योहारों का बहुत महत्व है। इनके बिना हमारा जीवन नीरस और ऊब भरा हो जाता है। त्योहारों से हमारे जीवन में परिवर्तन और उल्लास का संचार होता है। त्योहार किसी भी जाति और देश उसके अतीत से सम्बन्ध जोड़ने का भी उत्तम साधन हैं। जीवन में पग पग पर आने वाली कठिनाइयों तनाव और पीड़ा को भुलाने का साधन भी त्योहार ही हैं। यही कारण है कि त्योहारों के अवसर सभी मानव हर्ष से झूम उठते हैं।
-नीरसता के भागने वाला -जीवन को खुशहाल व रिश्तों को मजबूत बनाने में अटूट कड़ी की भूमिका निभाते त्योहार जिंदगी में उमंग और उत्साह की नई लहरों को जन्म देते हैं।
भारतीय जनजीवन में त्योहारों और उत्सवों का आदिकाल से ही काफी महत्त्व रहा है. यहां मनाए जाने वाले सभी त्योहार मानवीय गुणों को स्थापित कर लोगों में प्रेम, एकता व सद्भावना को बढ़ाने का संदेश देते हैं. दरअसल, ये त्योहार ही हैं जो परिवारों और समाज को जोड़ते हैं. त्योहार हमारी संवेदनाओं और परंपराओं के ऐसे जीवंत रूप हैं जिन्हें मनाना या यों कहे कि बारबार मनाना हमें अच्छा लगता है क्योंकि अनोखे रंग समेटे त्योहार हमारे जीवन में उमंग और उत्साह की नई लहरों को जन्म देते हैंऔर हमारे मन में भरी सभी प्रकार की नीरसता को भगा देते हैं।
संस्कृत की परिचायक-संस्कृति न केवल मनुष्य की आत्मा वाहक है बल्कि एक राष्ट्र का मूल भी है। विभिन्न देशों में अलग-अलग संस्कृतियां हैं चूंकि राष्ट्रीय त्योहार किसी देश की सबसे अच्छी सांस्कृतिक उपलब्धियों और सबसे महत्वपूर्ण रिवाजों का प्रतिनिधित्व करता है। त्योहार एक सांस्कृतिक घटना है और संस्कृतियों के अध्ययन के लिए एक शक्तिशाली उपकरण भी है। त्योहार को 'संस्कृति का वाहक' माना जाता है। त्योहार किसी देश, समाज और संस्कृतियों के व्यवहार और विचारों का प्रतिबिम्बन माना जाता है।
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भारत त्यौहारों का देश है, यहां हर दिन कोई न कोई त्यौहार होता है। राष्ट्रीय एकता का दृश्य उपस्थित करने वाले ये त्यौहार अपनी संस्कृति का हिस्सा हैं। इन त्यौहारों में कोई विकृति भी नहीं है। आज समाज में जो दिखाई दे रहा है, उससे ऐसा ही लगता है कि हम अपनी संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं, जबकि आज हमारे त्यौहार सात समंदर पार भी बहुत उत्साह के साथ मनाए जा रहे हैं। भारत के प्रमुख त्यौहारों में इंद्रधनुषी छटा बिखेरने वाला होली का त्यौहार भी है। होली के मौसम में प्रकृति भी छटा बिखेरती है, यानी होली का त्यौहार पूरी तरह से प्राकृतिक ही कहा जाएगा। जो त्यौहार प्रकृति से तालमेल रखते हैं, वह पूरी तरह से जनता के लिए भी लाभकारी होते हैं। हम प्रकृति के पुजारी हैं, जैसे भगवान हमारी रक्षा करता है, वैसे ही प्रकृति भी हमारी रक्षा करती है, लेकिन वर्तमान में हम प्राकृतिक रीति रिवाजों को भूलते जा रहे हैं यानी हम प्रकृति और संस्कार का तालमेल नहीं बिठा पा रहे। इसी कारण हमारे त्यौहारों का स्वरुप संकुचित होता जा रहा है। इसके लिए पूरी तरह से हमारा समाज ही दोषी है। हमने देखा है कि समाज के कुछ बुद्धिजीवी लोग त्यौहार को सीमित करने का अभियान चला रहे हैं, कोई कहता है कि पानी बचाओ, लेकिन उन लोगों को शायद यह नहीं पता कि होली रंगों का त्यौहार है, हमारे कपड़ों पर रंग नहीं होंगे तो होली कैसे कही जा सकती है। हम वर्ष के शेष दिनों में पानी बचाने का अभियान क्यों नहीं चलाते।
समरसता का त्यौहार-समाज को गुमराह करने वाले कथित बुद्धिजीवी कभी दीवाली के परंपरावादी कार्यक्रमों पर सवाल उठाते हैं तो कभी होली के सांस्कृतिक स्वरुप पर। हम यह भी जानते हैं कि हर देश की अपनी पहचान होती है, उस पहचान को बनाए रखने के लिए प्रयास किए जाते हैं, त्यौहार हमारे देश की पहचान का शाश्वत अंग हैं, खिलखिलाती प्रकृति के साथ मनाए जाने वाला त्यौहार होली भी हमारा शाश्वत त्यौहार है, जो दुश्मनी के भाव को समाप्त करता है और सामाजिक समरसता का भाव प्रवाहित करता है। जब हम विविधता में एकता की बात करते हैं तो उसके मूल में सामाजिक समरसता का ही भाव रहता है। होली का स्वरुप भी सामाजिक समरसता वाला ही है, यहां वैमनस्यता का कोई स्थान नहीं है। भारत के एक चलचित्र शोले में एक गाना भी समरसता के भाव का प्रकटीकरण करता है।इस अद्वितीय और विशिष्ट घटना के माध्यम से, हम मानव संस्कृति की गहरी परत की जांच सुविधाजनक और प्रत्यक्ष तरीके से कर सकते है। इसके अलावा, एक त्योहार हमें दो संस्कृतियों की विचलन और समानता का पता लगाने के लिए एक आधार प्रदान करता है।
उपसंहार -कहां तक कहे, सभी प्रकार के त्योहार हमें परस्पर एकता, एकरसता , एकरूपता और एकात्मकता का पाठ पढ़ाते है। यही कारण है कि हम हिन्दू, मुसलमानो, ईसाइयों, सिखों आदि के त्योहार और पर्वो को अपना त्योहार, पर्व मान करके उसमें भाग लेते है और ह्रदय से लगाते हैं। इसी तरह से मुसलमान, सिक्ख, ईसाई भी हमारे हिन्दू त्योहार-पर्वों को तन-मन से अपना करके अपनी अभिन्न भावनाओं को प्रकट करते है। अतएव हमारे देश के त्योहारो का महत्व धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत अधिक है। राष्टीय महत्व की दृष्टी से 15 अगस्त, 26 जनवरी, 2 अक्टूबर, 14 नवम्बर का महत्व अधिक है। संक्षेप में हम कह सकते है कि हमारे देश के त्योहार विशुद्ध प्रेम, भेदभाव और सहानुभूति का महत्वाकांक्षी करते हैं।
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