Hindi, asked by yashmeet8883, 2 months ago

जीवन के कुछ ऐसी घटनाओ का वर्णन किजिये जिनके घटित होने पर भी जीवन के वृहद् परीद्र्श्य पर प्रभावित् नहीं होते

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Answered by jha37731
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मैं तब शायद 5वी मै पढ़ता था तब एक दिन मेरे पिताजी ने मुझे कहा कि तुम गर्मी की छुट्टियों में बहुत समय बर्बाद कर रहे हो, चलो मेरे साथ काम पे। पिताजी ने कहा तो मजाक में था पर मैं अड़ गया कि मुझे आपके साथ चलना है। पापाजी मुझे ले तो गए पर मेरी नासमझी को देखते हुए रास्ते में मुझे मेरे दादाजी के घर छोड़ दिए। मेरे दादाजी के घर मेरे 3 चाचाजी उनका परिवार और मेरे ताऊजी और उनका परिवार रह्ता है। पिताजी ने मुझे बाहर ही दरवाजे पर छोड़ गए। मैं अंदर गया तो मेरे एक चाचा का परिवार नाश्ता कर रहे थे, मुझे देखके सबने मुह फ़ेर लिया। शायद उन्हें लगा होगा कि मैंने नाश्ता कर लिया है, पर फिर भी मैं अचानक कैसे आ गया ये वो पूछ सकते थे। खैर मेरे दादाजी दादीजी नीचे रहते थे, जहां हॉल में एक टीवी था उनके लिए और किचन। बाकी सबका कमरा ऊपर था। मैं टीवी देखने लगा। मुझे पता ही नहीं चला कब 2 घंटे निकल गए और मुझे भूख सी लगने लगी। अचानक मेरी उसी चाचा के बेटे ने मुझे बुलाया और कहा भैया मैं मीठी ब्रेड लाया हूँ, आप खाओगे? तो हम दोनों सीढी पर बैठ कर ब्रेड खाने लगे। पर वो बहुत गंदगी फैला रहा था, तो मैंने उसे और खाने को मना कर दिया और सीढ़ी साफ़ कर दी और फिर टीवी देखने लगा। पता नहीं कब मेरे पीछे मेरी चाची आयी और मेरा कॉलर पकड़ कर मुझे उठाया, और कहने लगी कि पूरी सीढ़ी गंदी कर दी मैंने अभी उन्होंने साफ़ करायी थी। डर के कारण मैं कांप रहा था पर उन्हें कोई रहम नहीं आयी। वो मुझे लेकर सीढ़ी तक गई और मुझे थोड़ा सा बचा हुआ ब्रेड का पैकेट और पूरी सीढ़ी पर बिखरी हुई ब्रेड दिखाई। मैंने कहा चाचीजी ये मैंने नहीं किया है आपके बेटे ने किया होगा। इसपर उन्होंने कहा मैंने तुम्हें देखा है यहा खाते हुए, और फिर बस तुम शहर में रहते हों घर वालों ने टेबल पे खाना नहीं सिखाया ऐसी बातें बोलने लगी जो मैं लिखना नहीं चाहता। दोपहर का समय हो रहा था, मैं कॉलर पकड़ाए डांट सुन रहा था सारी चाची मुझे देख रही थी, कोई कुछ नहीं बोल रहा था। तभी मेरे ताऊजी के बड़े बेटे जो करीब 28-30 साल के थे वो घर आए। उन्होंने सारा माजरा सुना और मुझे सीढ़ी पर धक्का दिया और उसे साफ़ करने को कहा। मुझे इतना डर लग रहा था कि मैं झाड़ू को ना मांग पा रहा था ना ही मुझे उम्मीद थी। मैंने सब हाथ से साफ़ किया और उसी ब्रेड के पैकेट में डाल दिया। तब उन्होंने मुझे वो ब्रेड खाने को कहा, मैं इसपर बाहर जाकर खा लूँगा कहकर घर से बाहर निकला। पहली बार इस 3 घंटे के समय में मैंने राहत की साँस ली। मैंने सारा ब्रेड नाली में डाल दिया पर उन्होंने देख लिया और मुझे आकर कहा तेरे बाप के पास बहुत पैसे है ना जो खाना फेंक रहा है। पर शायद वो भी सड़क पर होने के कारण मुझे और कुछ कहे बिना चले गए। मैं दोपहर की गर्मी में सड़क पर धूल और धूप में खड़ा रहा। एक आंख घर के दरवाजे पर गड़ाए हुए और एक आंख सड़क पर की कब पिताजी आयेंगे मुझे लेने। इस बीच जब भी दरवाजा अंदर से खुलता तो मैं बैठने की जगह पर छुपने की बेकार कोशिश करता। मुझे शायद चिढ़ाने के लिये वो दरवाजा हर 10 मिन में खुलता था, कोई बाहर आता फिर अंदर चला जाता। फिर सारे चाचा आए एक एक करके खाना खाने, किसी ने मुझसे बात नहीं की ना ही खाने का पूछा। मैं बाहर अब बस पापाजी का इन्तजार कर्ता रहा। शाम 8 बजे तक पापाजी आए, उन्हें लगा में बाहर उनका इन्तजार कर रहा हूँ। मैं फिर घर के अंदर गया चुपके से अपना सामान लेने और भाग के पापाजी की गाड़ी में बैठ गया, उनसे लिपट के। पापाजी को जब मैं बताने लगा कि मेरे साथ क्या हुआ तो उन्होंने ध्यान ना दिया, शायद काम में कुछ तकलीफ होगी। मैं पूरे रास्ते धीरे धीरे रोते हुए अपने घर आया, माँ ने पूछा खाना खाएगा? तब मुझसे रुका नहीं गया, मैं toilet का बहाना करके भाग गया। माँ के इस सवाल को सुन कर मेरे आंसू रुक नहीं पाए। मैंने बाहर आकर माँ से कहा आज मुझसे खाना खाया नहीं जाएगा और मैं सोने चला गया। ये बात मैंने माँ से 15 साल तक छुपा के रखी पता नहीं क्यूँ?

ये कैसी दुश्मनी होती है जो व्यक्ती से नहीं निकल सके तो बच्चे से ली जाती है ये मैं आजतक नहीं समझ पाया। जब एक बच्चे को घर से ज्यादा सड़क सुरक्षित लगे तो कुछ तो समस्या है उस घर में ये जनाना कोई मुश्किल बात नहीं।

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