जीवन में हास्य का महत्त्व speech
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HEY
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दुनिया में बहुत तरह के लोग रहते हैं जिनका रहन-सहन, खानपान, पहनावा, विचार और जीवन को जीने का तरीका अलग-अलग होता है लेकिन इसके बावजूद हर इंसान एक दूसरे से मुस्कान के जरिए जुड़ा रहता है। ये मुस्कान और हंसने-हंसाने की प्रवृत्ति ही दो अनजान लोगों को करीब लाती है और दो परिचितों के बीच की दूरियों को मिटाती है। भले ही हर देश और प्रान्त के लोगों की भाषा और समझ अलग-अलग हो लेकिन हंसी और मुस्कुराहट की भाषा सब के लिए एक ही होती है जिसे इस देश का नागरिक भी समझ सकता है और दूसरे देश से आया कोई सैलानी भी। जीवन में हास्य का बहुत महत्व है। आज के तनावपूर्ण जीवन में हास्य का विशेष महत्व है।
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lucky1829:
hii
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14
Hey guys...✌✌
अंग्रेजी में किसी विद्वान का कथन है— “मैन इज ए लाफिंग एनीमल” अर्थात्— “मनुष्य एक हँसने वाला प्राणी है।” मनुष्य और अन्य पशुओं के बीच भिन्नता सूचित करने वाले—बुद्धि, विवेक तथा सामाजिकता आदि जहाँ अनेक लक्षण हैं, वहाँ एक हास्य भी है। पशुओं को कभी हँसते नहीं देखा गया है। यह सौभाग्य, यह नैसर्गिक अधिकार एकमात्र मनुष्य को ही प्राप्त हुआ है। जिस मनुष्य में हँसने का स्वभाव नहीं, उसमें पशुओं का एक बड़ा लक्षण मौजूद है, ऐसा मानना होगा!
संसार में असंख्यों प्रकार के मनुष्य हैं। उनके रहन-सहन, आहार-विहार, विश्वास-आस्था, आचार-विचार, प्रथा-परम्परा, भाषा-भाव एवं स्वभावगत विशेषताओं में भिन्नता पाई जा सकती है। किन्तु एक विशेषता में संसार के सारे मनुष्य एक हैं। वह विशेषता है— ‘हास्य’। काले-गोरे, लाल-पीले, पढ़े-बेपढ़े, नाटे-लम्बे, सुन्दर-असुन्दर का भेद होने पर भी उनकी भिन्नता के बीच हँसी की वृत्ति सब में सम-भाव से विद्यमान है!
प्रसिद्ध विद्वान् मैल्कम मगरीज ने एक स्थान पर दुःख प्रकट करते हुए कहा है— “संसार में आज हँसी की सबसे अधिक आवश्यकता है, किन्तु दुःख है कि दुनिया में उसका अभाव होता जा रहा है।” कहना न होगा कि श्री मगरीज का यह कथन बहुत महत्व रखता है और उनका हँसी के अभाव पर दुःखी होना उचित ही है! देखने को तो देखा जाता है कि आज भी लोग हँसते हैं। किन्तु यह उनकी व्यक्तिगत हँसी होती है। किन्तु सामाजिक तथा सामूहिक हँसी दुनिया से उठती चली जा रही है। उसके स्थान पर एक अनावश्यक, एक कृत्रिम गम्भीरता लोगों में बढ़ती जा रही है।
ऐसा करने में उनका विचार होता है कि लोग उनको गहन-गम्भीर और उत्तरदायी व्यक्ति समझ कर आदर करेंगे, समाज में उनका वजन बढ़ेगा। यह बात सही है कि गम्भीरता जीवन में वाँछित गुण है। किन्तु यह ठीक तभी है, जब आवश्यकतानुसार हो और यथार्थ हो। नकली गम्भीरता से आदर होना दूर लोग मातमी सूरत देखकर उल्टा उपहास ही करते हैं। गम्भीरता के नाम पर हर समय मुँह लटकाये, गाल फुलाये, माथे में बल और आँखों में भारीपन भरे रहने वाले व्यक्तियों की समाज में बहुत कम पसन्द किया जाता है। वे एक बन्द पुस्तक की भाँति लोगों के लिये सन्देह तथा संदिग्धता के विषय बने रहते हैं।
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प्रसिद्ध विद्वान् मैल्कम मगरीज ने एक स्थान पर दुःख प्रकट करते हुए कहा है— “संसार में आज हँसी की सबसे अधिक आवश्यकता है, किन्तु दुःख है कि दुनिया में उसका अभाव होता जा रहा है।” कहना न होगा कि श्री मगरीज का यह कथन बहुत महत्व रखता है और उनका हँसी के अभाव पर दुःखी होना उचित ही है! देखने को तो देखा जाता है कि आज भी लोग हँसते हैं। किन्तु यह उनकी व्यक्तिगत हँसी होती है। किन्तु सामाजिक तथा सामूहिक हँसी दुनिया से उठती चली जा रही है। उसके स्थान पर एक अनावश्यक, एक कृत्रिम गम्भीरता लोगों में बढ़ती जा रही है।
ऐसा करने में उनका विचार होता है कि लोग उनको गहन-गम्भीर और उत्तरदायी व्यक्ति समझ कर आदर करेंगे, समाज में उनका वजन बढ़ेगा। यह बात सही है कि गम्भीरता जीवन में वाँछित गुण है। किन्तु यह ठीक तभी है, जब आवश्यकतानुसार हो और यथार्थ हो। नकली गम्भीरता से आदर होना दूर लोग मातमी सूरत देखकर उल्टा उपहास ही करते हैं। गम्भीरता के नाम पर हर समय मुँह लटकाये, गाल फुलाये, माथे में बल और आँखों में भारीपन भरे रहने वाले व्यक्तियों की समाज में बहुत कम पसन्द किया जाता है। वे एक बन्द पुस्तक की भाँति लोगों के लिये सन्देह तथा संदिग्धता के विषय बने रहते हैं।
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