जीवन मे सादgee ur sayam का महत्त्व
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सादगी एक ऐसा नियम है जिसके सहारे हम अपने वैयक्तिक तथा सामाजिक जीवन की बहुत-सी समस्याओं सहज ही हल कर सकते हैं। सादगी के द्वारा अपना बहुत-सा समय, धन, खर्च होने वाली शक्तियाँ बचा सकते हैं और उनका अपने उत्कर्ष के लिए सदुपयोग कर सकते हैं।
इसीलिए हमारे पूर्वजों ने जीवन के बाह्य विभाग को कम महत्व दिया है। सादगी से जीवन बिताने के लिए कहा है ताकि हम अपनी शक्ति व्यर्थ नष्ट न कर उसका सदुपयोग अच्छे कार्यों में कर सकें। ऋषियों का जीवन इसी सत्य का प्रतीक था और किसी भी महान् पथ का संधान करने वाले महापुरुष को सादगी का मार्ग ही अपनाना पड़ता है। अपनी आवश्यकतायें बहुत कम, सामान्य रखनी पड़ती हैं जिनसे जीवन का निर्वाह सहज रूप में होता रहे।
सादगी जहाँ व्यक्तिगत जीवन में लाभकारी होती है, वहाँ सामाजिक जीवन में भी संघर्ष, रहन-सहन की असमानता कृत्रिम अभाव महंगाई आदि को दूर करके वास्तविक समाजवाद की रचना करती है। सादगी समाजवाद का व्यावहारिक नियम कर दिया जाय तो कोई अत्युक्ति न होगी। समाज में, जीवन संघर्ष इसलिए बढ़ गया है कि प्रत्येक अपने लिए अधिक से अधिक माँग करता है, अपनी शक्ति के अनुसार साधन सामग्री जुटा लेता है, इससे दूसरों का हक भी छिनता है और समाज में अभाव पैदा होता है। अभाव से महँगाई बढ़ती है। सादगी सिखाती है कि जितनी आवश्यकता है, जितने से जीवन सरलता से चल जाता है उतना ही काफी है। फिर छीना-झपटी, अभाव क्यों रहेगा? न किसी का हक छिनेगा न महँगाई बढ़ेगी। यदि संसार के सभी लोग सादा जीवन बिताने लगें तो इसमें कोई सन्देह नहीं कि मानव-जाति की अनेकों आर्थिक और सामाजिक समस्यायें सुलझ जाएं। जीवन सरल हो जाय।
इसलिए जीवन को सादा बनाइए, इससे आपका और समाज का बहुत बड़ा हित साधन होगा।
इसीलिए हमारे पूर्वजों ने जीवन के बाह्य विभाग को कम महत्व दिया है। सादगी से जीवन बिताने के लिए कहा है ताकि हम अपनी शक्ति व्यर्थ नष्ट न कर उसका सदुपयोग अच्छे कार्यों में कर सकें। ऋषियों का जीवन इसी सत्य का प्रतीक था और किसी भी महान् पथ का संधान करने वाले महापुरुष को सादगी का मार्ग ही अपनाना पड़ता है। अपनी आवश्यकतायें बहुत कम, सामान्य रखनी पड़ती हैं जिनसे जीवन का निर्वाह सहज रूप में होता रहे।
सादगी जहाँ व्यक्तिगत जीवन में लाभकारी होती है, वहाँ सामाजिक जीवन में भी संघर्ष, रहन-सहन की असमानता कृत्रिम अभाव महंगाई आदि को दूर करके वास्तविक समाजवाद की रचना करती है। सादगी समाजवाद का व्यावहारिक नियम कर दिया जाय तो कोई अत्युक्ति न होगी। समाज में, जीवन संघर्ष इसलिए बढ़ गया है कि प्रत्येक अपने लिए अधिक से अधिक माँग करता है, अपनी शक्ति के अनुसार साधन सामग्री जुटा लेता है, इससे दूसरों का हक भी छिनता है और समाज में अभाव पैदा होता है। अभाव से महँगाई बढ़ती है। सादगी सिखाती है कि जितनी आवश्यकता है, जितने से जीवन सरलता से चल जाता है उतना ही काफी है। फिर छीना-झपटी, अभाव क्यों रहेगा? न किसी का हक छिनेगा न महँगाई बढ़ेगी। यदि संसार के सभी लोग सादा जीवन बिताने लगें तो इसमें कोई सन्देह नहीं कि मानव-जाति की अनेकों आर्थिक और सामाजिक समस्यायें सुलझ जाएं। जीवन सरल हो जाय।
इसलिए जीवन को सादा बनाइए, इससे आपका और समाज का बहुत बड़ा हित साधन होगा।
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