Hindi, asked by sharmabijaya1977, 3 days ago

जेंवत कान्ह नन्द इक ठौरे । कछुक खात लपटाय दुहुँ कर, बालक हैं अति भोरे बड़ौ कौर मेलत मुख भीतर, मिरचि दसन टुक तोरे तीछन लगी, नयन भरि आये, रोवत बाहर दौरे चूमति बदन रोहिनी माता लिये लगाइ अकोरे सूर स्याम को मधुर कौर दै, कीन्हें तीत निहोरे
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Answered by vishwas3396
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Answer:

जेंवत कान्ह नंद इकठौरे ।

कछुक खात लपटात दोउ कर, बालकेलि अति भोरे ॥

बरा-कौर मेलत मुख भीतर, मिरिच दसन टकटौरे ।

तीछन लगी नैन भरि आए, रोवत बाहर दौरे ॥

फूँकति बदन रोहिनी ठाढ़ी, लिए लगाइ अँकोरे।

सूर स्याम कौं मधुर कौर दै कीन्हें तात निहोरे ॥

भावार्थ :-- श्रीनन्द जी और कन्हाई एक स्थान में ( एक थाल में ) भोजन कर रहे हैं । बालोचित क्रीड़ा के आवेश में अत्यन्त भोले बने हुए श्रीकृष्ण कुछ खाते हैं और कुछ दोनों हाथों में लिपटा लेते हैं । कभी मुख में बड़े का ग्रास डालते हैं । (इस प्रकार भोजन करते हुए) दाँतों से मिर्च का स्पर्श हो जाने पर वह तीक्ण लगी । नेत्रों में जल भर आया, रोते हुए बाहर दौड़ चले । माता रोहिणी ने उठाकर उन्हें गोद में ले लिया और खड़ी-खड़ी उनके मुख को फूँकने लगीं । सूरदास जी कहते हैं कि बाबा ने श्यामसुन्दर को मीठा ग्रास देकर उनको प्रसन्न किया ।

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