जब कोई युवा अपनेघर से बाहर ननकलता हैतो पहली कठिनाई उसेममत्र चुनने मेंपड़ती है। यठि उसकी
स्थथनत बबल्कुल एकाांत और ननराली नहीां रहती तो उसकी जान -पहचान के लोग िडािड बढ़ते जाते हैंऔर
थोडे ही ठिनों मेंकुछ लोगों से उसका हे ि- मेल बढ़ते-बढ़तेममत्रता के रूप मेंपररणत हो जाता है। ममत्रों के
चुनाव की उपयुक्तता पर उसके जीवन की सफलता ननर्भर हो जाती है,क्योंकक सांगनत का गुप्त प्रर्ाव हमारे
आचरण पर बडा र्ारी पडता है। हम लोग ऐसे समय मेंसमाज मेंप्रवेश करके अपना कायभ आरांर् करते हैं,
जबकक हमारा धित्त कोमल और हर तरह का सांथकार ग्रहण करनेयोग्य रहता है।हमारे र्ाव अब पररमास्जभत
और हमारी प्रवत्तृि और पररपक्व रहती हे । हम लोग कच्ची ममट्टी की मूनतभ के समान रहते हैं,स्जसे जो स्जस
रूप मेंचाहे,उस रूप मेंढाि -चाहे राक्षस बनाए, चाहे िेवता।
उपयुक्त गद्याांश के मलए उधचत शीर्भक बताइए।
(i) युवावस्था और ममत्रता (ii) युवाओीं के ममत्र
(iii)युवाओीं का जीवन (iv) युवा वगभ
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