जब में था तब हरि नहीं, अब हरि है में नाहि ।।
अब अंधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या माहि।।।।
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कबीर जी का भाव है कि जब तक मनुष्य में '' अर्थात अहंकार की भावना होती है।तब तक उसे ईश्वर प्राप्त नहीं हो सकते। और जब अहंकार की भावना समाप्त हो जाती है तो स्वयं को ईश्वर के समीप पाता है। कहने का अभिप्राय है कि ईश्वर को पाने के लिए अहंकार त्यागना अती आवश्यक है।
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Explanation:
कबीरदास जी कहते हैं कि जहां घमंड होता है । अहंकार होता है वहां भगवान का वास नहीं होता है। जहां भगवान विराजते हैं वहां हम नहीं हो सकता। क्योंकि प्रेम की गली अत्यधिक तंग है ।उसमें अहंकार और ईश्वर का एक साथ नहीं रह सकते । अहंकार मनुष्य के लिए अभिशाप है ।अहंकारी व्यक्ति कभी भगवान को नहीं पा सकता। भगवान का अर्थ है प्रेम! और जहां सच्चा प्यार होगा वहां अहंकार नहीं हो सकता। प्रेम की गली में या तो भगवान रहेंगे या फिर अहंकार। अंहकारी व्यक्ति कभी भगवान के प्रेम को समझ नहीं सकता है।
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