jab maine kisi ki sahayta kari hindi essay
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हम पाँच सहेलियाँ निकिता, निशा, सुरभि, दिव्या, श्रुति पचमढ़ी घूमने गए थे। हमने वहाँ दर्शनीय स्थल देखे। हमने वहाँ सुंदर और सुनहरी पहाड़ियों का आनंद लिया। जब हम भ्रमण कर लौट रहे थे। तब हमने देखा एक असहाय स्त्री पेड़ के नीचे बैठी थी और ठंड से ठिठुर रही थी। मुझे उस पर दया आ गई। मैंने अपनी शॉल उसे दे दी। उसने उसे ओढ़कर ठंड भगाई। उस असहाय स्त्री की मदद कर मेरा मन बहुत हर्षित हुआ।
- निकिता भायरे, मसनगाँव (मप्र)
सहायता का मानव जीवन में बहुत महत्व है। सहायता करने से व्यक्ति की नम्रता व उसके संस्कार प्रकट होते हैं। सहायता करने से व्यक्ति को परमसुख की प्राप्ति होती है। इसी प्रकार की खुशी मुझे तब हुई जब हमारे विद्यालय के कुछ बच्चों की सहायता के लिए धन राशि एकत्रित की। उस समय मैंने व मेरे कुछ साथियों ने मिलकर भी धन राशि एकत्रित की व अपनी ओर से भी कुछ धन राशि दी। उस समय मैं उनकी यह सहायता कर बहुत हर्षाया।
Answer:
आनंद
September 14, 2011, 10:00 AM IST बंटी निहाल in मेरे अपने विचार | देश-दुनिया
मेरे मोहल्ले की एक विधवा वृध्दा महिला जिसकी उम्र लगभग 65 साल है। उसके 2 बेटे हैं। उसका बड़ा लड़का है पर ना के बराबर वह अपने माता और अपने बीमार छोटे भाई को छोड़कर अपनी बीबी के साथ अलग रहता है। वृध्दा और उसका बीमार पुत्र दोनों साथ रहतें है। 5 साल पहले उसका छोटा पुत्र खेलता, कुदता और डांस करता मगर जालिम बीमारी से उसकी खुशी देखी नहीं गई और बेचारा बीमारग्रस्त हो गया। बहुत से डाक्टरों और दवा-दारू किया गया परन्तु वह ठीक नही हो पाया। उसे मेकाहारा में भर्ती कराया गया। डाक्टरों ने आपरेशन की बात की गरीबी रेखा कार्ड होने के कारण सरकार द्वारा संजीवनी कोष से सहायता राशि प्राप्त हुई और आपरेशन भी हो गया किन्तु पहले थोड़ा बहुत चल फिर सकता था मगर आपरेशन के बाद तो और प्राब्लम होने लगा। अब वह उठ बैठ नही सकता, उसका देखरेख उसकी वृध्दा माता को करनी पड़ती है। बस बिस्तर पर पड़ा रहता हैं और भगवान से दुआ करता है कि कब उसे मुक्ति मिलें। उम्र अधिक होने के कारण वह अधिक कार्य भी नही कर सकती। बीमार बेटे को छोड़कर वह कहीं जा भी नहीं सकती, बस आस-पास ही किसी के यहां बर्तन साफ कर, पोछा लगाकर अपना व बेटे का पेट पालती थी।
दिनांक 18.04.2011 को तेलीबांधा तालाब योजना में जलविहार को तोड़कर निवासियों को बोरियाकला में शिफ्ट किया गया है। तब से और अधिक परेशानी का सामना करना पड़ा है। बीमार बेटे को छोड़कर बोरियाकला से रायपुर लगभग 13 कि.मी. दूर जाये भी तो कैंसे? राशन कार्ड से चावल तो मिलता है परन्तु जीवन यापन के लिए केवल चावल ही काफी नहीं है। केवल चावल को खाकर कोई रह सकता है, क्या ? साग-सब्जी, हल्दी, मिर्च, तेल, नमक की आवश्यकता तो आम आदमी को होती ही है। 2 माह तक कैसे उनका गुजारा हुआ है वहीं जानती हैं। एक दिन मैं उसी ब्लाक में अपने रिश्तेदार के यहां गया था। वापसी में, मेरा अचानक उनके घर जाना हुआ। मिलने पर मुझसे उन्होंने मदद की गुहार लगाई ( इससे पहले भी मैं मेकाहारा में आपरेशन के वक्त उनके लिए दौंड भाग किया था ) मुझसे उनकी हालत देखी नहीं गई। मैंने ठान लिया की इनके लिए कुछ ना कुछ जरूर करूंगा। मेरा अंतर्मन मुझे गवाही दे रहा था कि इंसानियत के लिए बहुत जरूरी है इनकी मदद करना। मैंने आफिस आकर एक पत्र बनाया। पत्र का प्रारूप
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