जब सिनेमा ने बोलना सीखा' पाठ के आधार पर उस दौर की एक सवाक एवं एक मूक फिल्म के लिए प्रतिवेदन लिखिए
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Answer:
3 मई 2013 (शुक्रवार) को भारतीय सिनेमा पूरे सौ साल का हो गया। किसी भी देश में बनने वाली फिल्में वहां के सामाजिक जीवन और रीति-रिवाज का दर्पण होती हैं। भारतीय सिनेमा के सौ वर्षों के इतिहास में हम भारतीय समाज के विभिन्न चरणों का अक्स देख सकते हैं।उल्लेखनीय है कि इसी तिथि को भारत की पहली फीचर फ़िल्म “राजा हरिश्चंद्र” का रुपहले परदे पर पदार्पण हुआ था। V इस फ़िल्म के निर्माता भारतीय सिनेमा के जनक दादासाहब फालके थे। एक सौ वर्षों की लम्बी यात्रा में हिन्दी सिनेमा ने न केवल बेशुमार कला प्रतिभाएं दीं बल्कि भारतीय समाज और चरित्र को गढ़ने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
Explanation:
दादा साहब फालके की फिल्में की सफलता को देखकर कुछ अन्य रचनात्मक कलाकारों में भी हलचल मचने लगी थी। 1913 से 1918 तक फिल्म निर्माण सम्बंधी गतिविधियां महाराष्ट्र तक ही सीमित थी। इसी दौरान कलकत्ता में हीरालाल सेन और जमशेद जी मदन भी फिल्म निर्माण में सक्रिय हुए। फालके की फिल्में जमशेद जी मदन के स्वामित्व वाले सिनेमाघरों में प्रदर्शित होकर खूब कमाई कर रही थीं। इसलिए जमशेद जी मदन इस उधेड़बुन में थे कि किस प्रकार वे फिल्में बनाकर अपने ही थिएटरों में प्रदर्शित करें। 1919 में जमशेदजी मदन को कामयाबी मिली जब उनके द्वारा निर्मित और रूस्तमजी धेतीवाला द्वारा निर्देशित फिल्म 'बिल्म मंगल' तैयार हुई। बंगाल की पूरी लम्बाई की इस पहली कथा फिल्म का पहला प्रदर्शन नवम्बर, 1919 में हुआ। जमदेश जी मदन (1856-1923) को भारत में व्यावसायिक सिनेमा की नींव रखने का श्रेय दिया जाता है। वे एलफिंस्टन नाटक मण्डली के नाटकों में अभिनय करते थे और बाद में उन्होंने सिनेमाघर निर्माण की तरफ रूख किया। 1907 में उन्होंने कलकत्ता का पहला सिनेमाघर एलफिंस्टन पिक्चर पैलेस बनाया। यह सिनेमाघर आज भी मौजूद है और अब इसका नाम मिनर्वा है। 1918 में मदन का सिनेमा साम्राज्य भारत, बर्मा और श्रीलंका तक फैल गया था। तब जमशेद जी मदन डेढ़ सौ से अधिक सिनेमाघरों के मालिक थे।