जगे हम, लगे जगाने विश्व, लोक में फैला फिर आलोक
व्योमतम पुंज हुआ तब नष्ट, अखिल संसृति हो उठी अश
विमल वाणी ने वीणा ली, कमल कोमल कर में सप्रीत
सप्तस्वर सप्तसिंधु में उठे, छिड़ा तब मधुर साम संगीत ।
विजय केवल लोहे की नहीं, धर्म की रही धरा पर धूम
भिक्षु होकर रहते सम्राट, दया दिखलाते घर-घर घूम ।
'यवन' को दिया टया का टास
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जगे हम, लगे जगाने विश्व, लोक में फैला फिर आलोक
व्योमतम पुंज हुआ तब नष्ट, अखिल संसृति हो उठी अश
विमल वाणी ने वीणा ली, कमल कोमल कर में सप्रीत
सप्तस्वर सप्तसिंधु में उठे, छिड़ा तब मधुर साम संगीत ।
विजय केवल लोहे की नहीं, धर्म की रही धरा पर धूम
भिक्षु होकर रहते सम्राट, दया दिखलाते घर-घर घूम ।
'यवन' को दिया टया का टास
भावर्थ : यह पंक्तियाँ हमारा प्यारा भारत कविता से ली गई है | यह कविता जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखी गई है | कवि इन पंक्तियों में कहते है , सबसे पहले हम भारतवासी जागे , हम भारतवासियों को सबसे पहले ज्ञान प्राप्त हुआ | फिर सारे संसार में ज्ञान का प्रचार में जुट गये | इस प्रकार सारे संसार में ज्ञान का प्रकाश फ़ैल गया | इस तरह सारा संसार ज्ञान से प्रकाशित हो गया | तब आकाश तक फैला अज्ञान रूपी अंधकार का नष्ट हो गया | पूरी सृष्टि खुशी से खिल उठी | जब सारे संसार में ज्ञान का प्रचार हो गया , तब आकाश तक फैला अंधकार नष्ट हो गया , सारी सृष्टि खुश हो गई |