जग-जीवन में जो चिर महान,
सौदर्य पूर्ण और सत्य-प्राण,
मैं उसका प्रेमी बनूं नाथ,
जो हो मानव के हित समान।
भावार्थ सहित
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व्याख्या – हे प्रभु! मैं वह प्रकाश बन सकें, जिसमें सम्पूर्ण प्राणी समाहित हो जाएँ, जिससे जीवन में शक्ति प्राप्त हो तथा भय, शक, संदेह एवं बिना सोच-विचार और अन्धविश्वास के किसी के प्रति निष्ठा रखने की भावना का निवारण हो सके। पाकर प्रभु …………………….. विहान।
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7 months ago