जग में सचर अचर जितने हैं सारे कर्म निरत हैं उन्हें एक-एक सभी को सबके निश्चित व्रत है जीवन भर आता वसुधा पर छाया करता है कि विश्वकर्म में कैसी तत्परता है भावार्थ
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प्रश्न में दी गयी पक्तियों में कुछ भाषायी अशुद्धियां हैं, सही पंक्तियां इस प्रकार होंगी...
जग में सचर अचर जितने हैं सारे कर्म निरत हैं,
धुन है एक न एक सभी को सबके निश्चित व्रत हैं।
जीवन भर आतप सह वसुधा पर छाया करता है,
तुच्छ पत्र की भी स्वकर्म में कैसी तत्परता है ।।
संदर्भ — ये पंक्तियाँ हिंदी के कवि ‘रामनरेश त्रिपाठी’ द्वारा लिखी गयी कविता “जीवन-संदेश” के प्रथम खंड से ली गयी हैं। इस कविता में कवि ने कर्मण्यता के महत्व पर प्रकाश डाला है।
भावार्थ — कवि कहता है कि इस संसार में चल अर्थात गति कर सकने वाले प्राणी जैसे कि मानव और पशु-पक्षी और अचल अर्थात स्थिर रहने वाली संरचनायें जैसे कि पेड़-पौधे और प्रकृति के अन्य तत्व, सभी अपने कर्मों में लीन है। सब कर्तव्य भाव से अपने कार्य को पूरा करने में लगे हुयें हैं। इस संसार में सभी का कुछ न कुछ उद्देश्य है और वो अपने उस उद्देश्य को पूरा करने में पूरी लगन और निष्ठा से लगे हुये हैं।
कवि कहता है कि अपने कर्तव्य पथ पर डटे रहने की भावना के कारण ही वृक्ष का एक छोटा पत्ता भी कैसी तत्परता से अपने कर्म में लीन है। वो अपने पूरे जीवन में धूप को सहकर भी लोगों को छाया प्रदान करता है, क्योंकि ये उसका कर्तव्य है।