Jain kitne Prakar ke Hote Hain
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Answer:5
Explanation:
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मतिज्ञान
श्रुतिज्ञान
अवधिज्ञान
मनःपर्याय ज्ञान
कैवल्य ज्ञान
Explanation:
मतिज्ञान-
मन व इंद्रियों की सहायता से होने वाला अर्थ का ज्ञान अर्थात इंद्रिय जनित ज्ञान ।
श्रुतिज्ञान-
श्रवण ज्ञान। मन एवं इंद्रियों के द्वारा हुए अर्थज्ञान का वाच्यार्थ ज्ञान यानी पहले के ज्ञान की व्याख्या तथा अर्थ को सुनकर गृहण किया जाता है , वह ज्ञान श्रुतिज्ञान कहलाता है।
अवधिज्ञान –
मन व इंद्रियों की सहायता के बिना आत्म-शक्ति से अमुक नियत मर्यादा-सीमा तक के मूर्त पदार्थों की जानकारी देने वाला ज्ञान।इसको हम दिव्य ज्ञान भी कह सकते हैं।
मनःपर्याय ज्ञान-
अन्य व्यक्तियों के मन मस्तिष्क का ज्ञान।
कैवल्य ज्ञान-
पूर्ण ज्ञान (निर्ग्रंथ एवं जितेन्द्रियों को प्राप्त होने वाला ज्ञान) । एकदम शुद्ध , संपूर्ण तथा अनंत ज्ञान जिस पर कोई आवरण नहीं होता । मन व इंद्रियों की सहायता के बिना तीनों लोक के तमाम मूर्त व अमूर्त पदार्थों को एवं मनोभावों को यथावत जानने वाला ज्ञान ।