जजमानी प्रथा में परिवर्तन तथा विघटन के कारणों को समझाइए।
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जजमानी प्रथा भारत में ग्रामीण समुदाय के अंतर्गत विभिन्न जातियों के परिवारों के बीच एक सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था, जिसके अनुसार एक परिवार दूसरे को संपूर्ण रूप से कुछ नियत सेवाएं देता है। जैसे कर्मकांड संपन्न करवाना, हजामत बनाना या कृषि हेतु मज़दूरी करना। ये संबंध पीढ़ियों तक जारी रहते हैं और भुगतान सामान्य: नक़द की अपेक्षा फ़सल के एक नियत भाग के रूप में किया जाता है।
संरक्षक परिवार को 'जजमान' (संस्कृत शब्द 'यजमान', यानी 'त्यागी संरक्षक', जो पुजारियों का उपयोग कर्मकांड कराने हेतु करता है) और आश्रित परिवार 'जजमानी' कहलाते हैं। संरक्षक परिवार स्वयं दूसरे का आश्रित हो सकता है, जिसे वह कुछ सेवाओं के लिए संरक्षित करता है और उनके द्वारा वह भी कुछ सेवाओं हेतु संरक्षण पाता है। वंशानुगत प्रवृत्ति कुछ प्रकार की बंधुआ मज़दूरी को बढ़ाती है, क्योंकि वंशानुगत संरक्षकों की सेवा पारिवारिक बाध्यता है।
ग्राम समुदाय हमारे समाज की मूल इकाई रही है और इसमें ग्राम की सभी जातियाँ, ग्राम समुदाय के अंग रूप से ही व्यवस्थित थीं। ये सभी जातियाँ मूलत: पेशों पर आधारित होती थीं।
'जजमानी प्रथा' में कृषक-गृहस्थ ही जजमान होता था और बाकी सब लोग एक प्रकार से उसके पुरोहित होते थे। चाहे वे ब्राह्मण पुरोहित हों अथवा कुम्हार, तेली, नाई, धोबी, दर्जी, लुहार, बढ़ई, सुनार, चर्मकार, धुनिया, बारी, माली, पटहारे आदि ग्रामीण कारीगर हों, सभी कृषक-गृहस्थों को अपना जजमान मानते थे और वे उसके लिए सामग्री प्रस्तुत करते थे। यह सामग्री दो प्रकार की होती थी- एक तो सीधे कृषि के उपयोग की, जैसे हल बनाना या बैलगाड़ी बनाना। दूसरी वह जो कि कृषि की नहीं बल्कि कृषकों तथा अन्य सभी ग्रामीणों की आवश्यकताओं की पूर्ति करती थी।
इन ग्रामीण कारीगरों के अतिरिक्त गाँवों में एक वर्ग हलवाहों का होता था, जो न कृषि के लिए, न कृषकों के लिए कोई सामग्री बनाता था किंतु वह सीधे कृषि कार्य में कठोर शरीर श्रम से कृषकों की सेवा सहायता करता था। यह वर्ग भूमिहीन कृषकों का था जो कृषि तो करता था, लेकिन दूसरों की भूमि पर। हाँ, कृषकों ने उसे थोड़ी-बहुत भूमि वंश परम्परा से उनकी सेवाओं के पुरस्कार स्वरूप दे रखी थी, किंतु इससे इनका भरण-पोषण नहीं होता था। मुख्य रूप से वे भूमिधर कृषकों के लिए हल चलाकर ही अपनी जीविका का निर्वाह करते थे।
जजमानी व्यवस्था मुख्य पेशों और सेवाओं के आधार पर गठित थी। इस प्रकार कुल मिलाकर एक सुदृढ़ ग्राम समुदाय बनता था, जो सबकी सेवाओं का पारस्परिक हित के लिए उपयोग करता था।
जजमानी प्रणाली: यह क्या है?
जाति व्यवस्था, धार्मिक व्यवस्था, भूमि स्वामित्व प्रणाली और राजनीतिक संरचना सभी ग्रामीण संस्कृति में जजमानी व्यवस्था से जुड़ी हुई हैं। नतीजतन, इन संरचनाओं में किसी भी बदलाव का जजमानी प्रणाली पर भी प्रभाव पड़ेगा, और इसके विपरीत।
संशोधन और विघटन के कारण:
- शिल्प कौशल और विशिष्ट जातियों के सदस्यों द्वारा निर्मित मूल कार्य में भी महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं।
- कुछ जातियाँ जो कभी जजमानी व्यवस्था की सदस्य थीं, हाल के वर्षों में पिछड़े वर्ग के आंदोलनों के बढ़ने के कारण इससे पीछे हट गईं।
- आधुनिकीकरण के कारण जजमानी व्यवस्था चरमरा रही है।
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