जल के स्वत: प्रोटोनीकरण से आप क्या समझते हैं? इसका क्या महत्त्व है?
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क्लोरीन (यूनानी: χλωρóς (ख्लोरोस), 'फीका हरा') एक रासायनिक तत्व है, जिसकी परमाणु संख्या १७ तथा संकेत Cl है। ऋणात्मक आयन क्लोराइड के रूप में यह साधारण नमक में उपस्थित होती है और सागर के जल में घुले लवण में प्रचुर मात्रा में पाई जाती है।[2] सामान्य तापमान और दाब पर क्लोरीन (Cl2 या "डाईक्लोरीन") गैस के रूप में पायी जाती है। इसका प्रयोग तरणतालों को कीटाणुरहित बनाने में किया जाता है। यह एक हैलोजन है और आवर्त सारणी में समूह १७ (पूर्व में समूह ७, ७ए या ७बी) में रखी गयी है। यह एक पीले और हरे रंग की हवा से हल्की प्राकृतिक गैस जो एक निश्चित दाब और तापमान पर द्रव में बदल जाती है। यह पृथ्वी के साथ ही समुद्र में भी पाई जाती है।
जल के स्वत: प्रोटोनीकरण से हम जो समझते हैं वो और इसका क्या महत्त्व बर्णन किया गया है –
• जल का स्वतःआयनन को बास्तब में जल के स्वत: प्रोटोनीकरण कहा जाता है। जल का स्वतःआयनन का अभिक्रिया है –
H_2O(अम्ल) + H_2O(क्षार) --------> H_3O+ + OH-
• जल अपने से प्रबल अम्ल से क्षार की तरह अभिक्रिया करता है और अपने से प्रबल क्षार से अम्ल की तरह अभिक्रिया करता है। जल के स्वत: प्रोटोनीकरण से जल में ये उभयधर्मी गुण आता है।
• H_2O + NH_3 ---------> NH_4+ + OH-
H_2O + H_2S ----------> H_3O+ + HS-