Jal pollution' se hone walli haniyo ke jankari dekar oska chetr saheth varn kejeye
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जल प्रदूषण: कमोबेश तेल प्रदूषण तेल भण्डारण रिसाव, जीवाश्म ईंधन उपयोग, ग्रीन हाउस गैसों में वृद्धि एवं तेल टैंकरों से रिसाव आदि से होता है जिससे तैलीय प्रदूषण भूमंडलीय जलवायु में परिवर्तन उत्पन्न करते हैं। इसके अलावा जलयानों एवं तेल पाइप लाइनों से रिस कर निकलने वाला तेल तथा तलघरों में बनाये गये तेल भण्डारों से तेलीय हाइड्रोकार्बन विभिन्न माध्यमों द्वारा ताजे पानी में मिलकर उसे प्रदूषित करते रहते हैं। तेलीय प्रदूषण से मछलियों एवं अन्य जलीय जीवों पर घातक प्रभाव देखे गये हैं।
जल प्रदूषण नियंत्रण के उपाय (Solution of Water Pollution)
जल प्रदूषण नियंत्रण के निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं-
· कीटनाशकों के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाना चाहिए, इनकी जगह जैवनाशकों जैसे बैसिलस या ऐसे विषाणुओं का प्रयोग करना चाहिए जो सिर्फ कीटाणुओं का नाश करें। इसके अतिरिक्त जैव उत्प्रेरकों जैसे राइजोबियम, नीलहरित शैवाल, एजोटोबैक्टर, माइकोराइजा का प्रयोग करना चाहिए।
· कूड़े-करकट को जलाशयों एवं नदियों में न डालकर शहर से बाहर किसी गड्ढे में डालना चाहिए।
· उर्वरक एवं विद्धयुत संयंत्रों से सल्फर तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड के उत्सर्जन को कम करने अम्लीय वर्षा को रोका जा सकता है।
· मृत जीव-जन्तुओं को नदियों में प्रभावित न करने के साथ चिता की राख नदियों में नहीं डालनी चाहिए।
· चमड़ा उद्योग में चमड़ी से बाल निकालने तथा उसे नरम करने की प्रक्रिया में प्रोटियस एंजाइम को व्यवहार में लाना चाहिए। इस प्रक्रिया में अल्प जल के साथ-साथ सल्फेट, टैनिन, अमोनिया, क्रोमियम आदि रसायनों का भी अल्प मात्रा में उपयोग होता है।
· कपड़ा तथा अन्य उद्योग जिनमें रंगों का प्रयोग होता है उनके रंगीन जल में रंगों का शोषण करने के लिए लिग्निन का प्रयोग करना चाहिए जो कागज उत्पाद के अवशिष्ट जल में पाया जाता है।
· सीवर लाइनों का जल शहर से बाहर शोधन करके नदियों में डालना चाहिए।
· तैलीय पदार्थों से बने कीचड़ को बायोरेमिडियेशन तकनीक द्वारा शुद्ध करना चाहिए तथा मिट्टी के साथ कीचड़ को मिलाकर उसकी सांद्रता एवं तापमान बनाये रखते हुए उसमें यूरिया एवं फास्फेट आदि डालकर उसे खाद में बदल देना चाहिए।
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