Hindi, asked by surajsaha9211pagc9k, 1 year ago

जल संरक्षण के दस उपाय

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Answered by hello147
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सबको जागरूक नागरिक की तरह `जल संरक्षण´ का अभियान चलाते हुए बच्चों और महिलाओं में जागृति लानी होगी। स्नान करते समय `बाल्टी´ में जल लेकर `शावर´ या `टब´ में स्नान की तुलना में बहुत जल बचाया जा सकता है। पुरूष वर्ग ढाढ़ी बनाते समय यदि टोंटी बन्द रखे तो बहुत जल बच सकता है। रसोई में जल की बाल्टी या टब में अगर बर्तन साफ करें, तो जल की बहुत बड़ी हानि रोकी जा सकती है।

2. टॉयलेट में लगी फ्लश की टंकी में प्लास्टिक की बोतल में रेत भरकर रख देने से हर बार `एक लीटर जल´ बचाने का कारगर उपाय उत्तराखण्ड जल संस्थान ने बताया है। इस विधि का तेजी से प्रचार-प्रसार करके पूरे देश में लागू करके जल बचाया जा सकता है।

3. पहले गाँवों, कस्बों और नगरों की सीमा पर या कहीं नीची सतह पर तालाब अवश्य होते थे, जिनमें स्वाभाविक रूप में मानसून की वर्षा का जल एकत्रित हो जाता था। साथ ही, अनुपयोगी जल भी तालाब में जाता था, जिसे मछलियाँ और मेंढक आदि साफ करते रहते थे और तालाबों का जल पूरे गाँव के पीने, नहाने और पशुओं आदि के काम में आता था। दुर्भाग्य यह कि स्वार्थी मनुष्य ने तालाबों को पाट कर घर बना लिए और जल की आपूर्ति खुद ही बन्द कर बैठा है। जरूरी है कि गाँवों, कस्बों और नगरों में छोटे-बड़े तालाब बनाकर वर्षा जल का संरक्षण किया जाए।

4. नगरों और महानगरों में घरों की नालियों के पानी को गढ्ढे बना कर एकत्र किया जाए और पेड़-पौधों की सिंचाई के काम में लिया जाए, तो साफ पेयजल की बचत अवश्य की जा सकती है।

5. अगर प्रत्येक घर की छत पर ` वर्षा जल´ का भंडार करने के लिए एक या दो टंकी बनाई जाएँ और इन्हें मजबूत जाली या फिल्टर कपड़े से ढ़क दिया जाए तो हर नगर में `जल संरक्षण´ किया जा सकेगा।

6. घरों, मुहल्लों और सार्वजनिक पार्कों, स्कूलों अस्पतालों, दुकानों, मन्दिरों आदि में लगी नल की टोंटियाँ खुली या टूटी रहती हैं, तो अनजाने ही प्रतिदिन हजारों लीटर जल बेकार हो जाता है। इस बरबादी को रोकने के लिए नगर पालिका एक्ट में टोंटियों की चोरी को दण्डात्मक अपराध बनाकर, जागरूकता भी बढ़ानी होगी।

7. विज्ञान की मदद से आज समुद्र के खारे जल को पीने योग्य बनाया जा रहा है, गुजरात के द्वारिका आदि नगरों में प्रत्येक घर में `पेयजल´ के साथ-साथ घरेलू कार्यों के लिए `खारेजल´ का प्रयोग करके शुद्ध जल का संरक्षण किया जा रहा है, इसे बढ़ाया जाए।

8. गंगा और यमुना जैसी सदानीरा बड़ी नदियों की नियमित सफाई बेहद जरूरी है। नगरों और महानगरों का गन्दा पानी ऐसी नदियों में जाकर प्रदूषण बढ़ाता है, जिससे मछलियाँ आदि मर जाती हैं और यह प्रदूषण लगातार बढ़ता ही चला जाता है। बड़ी नदियों के जल का शोधन करके पेयजल के रूप में प्रयोग किया जा सके, इसके लिए शासन-प्रशासन को लगातार सक्रिय रहना होगा।

9. जंगलों का कटान होने से दोहरा नुकसान हो रहा है। पहला यह कि वाष्पीकरण न होने से वर्षा नहीं हो पाती और दूसरे भूमिगत जल सूखता जाता हैं। बढ़ती जनसंख्या और औद्योगीकरण के कारण जंगल और वृक्षों के अंधाधुंध कटान से भूमि की नमी लगातार कम होती जा रही है, इसलिए वृक्षारोपण लगातार किया जाना जरूरी है।

10. पानी का `दुरूपयोग´ हर स्तर पर कानून के द्वारा, प्रचार माध्यमों से कारगर प्रचार करके और विद्यालयों में `पर्यावरण´ की ही तरह `जल संरक्षण´ विषय को अनिवार्य रूप से पढ़ा कर रोका जाना बेहद जरूरी है। अब समय आ गया है कि केन्द्रीय और राज्यों की सरकारें `जल संरक्षण´ को अनिवार्य विषय बना कर प्राथमिक से लेकर उच्च स्तर तक नई पीढ़ी को पढ़वाने का कानून बनाएँ।
Answered by tiger009
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जल संकट आज हमारे लिए बल्कि सम्पूर्ण मानव जाति के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनकर खड़ा है,और इसका एक मात्र उपाय है जल संरक्षण।

जल संरक्षण के उपायों पर अमल करने के लिए सबसे अधिक आवश्यकता है इसके प्रति जागरूकता की,यदि हम जागरूक हों तो फिर निम्नलिखित उपायों

के उपयोग से जल संरक्षण संभव है:

1. सबसे पहले तो हमें अपने दिन-प्रतिदिन के जल खर्च में कटौती करनी होगी,जिससे हम उपलब्ध जलराशि की संचय अवधि बढ़ा सकते हैं ।

2.हमें गंदे जल के पुनः प्रयोग की आदत डालनी होगी जैसे,फल,सब्जी और अनाज को धोने के बाद फेंका जाने वाला पानी,हमारे नहाने के बाद बेकार बहने वाला पानी.इन्हें हम घर की सफ़ाई,गंदे कपड़ों की धुलाई या बागवानी में उपयोग कर सकते हैं ,

कपड़े धोने के बाद वाले गंदे पानी को शौच के लिए प्रयोग कर सकते हैं।

3. अन्धाधुन्ध कटते और उजड़ते पेड़ों और जंगलों की कटाई के विरुद्ध क़ानून बनाकर उनकी कटाई रोक कर।

4.पेड़ों के कटना रुक जाए तो हम दोहरी सुरक्षा पा सकते हैं,पहला ये कि पर्याप्त संख्या में पेड़ होंगे तो भूमिगत जल का ह्रास नहीं होगा और दूसरा ये कि भूमिगत जल होगा तो वाष्पीकरण होगा,और वाष्पीकरण होगा तो वर्षा होगी।

5.औद्योगीकरण और दिनोदिन बढती जनसँख्या जंगलों और पेड़ों की अनियंत्रित कटाई का कारण बना हुआ है जिसके कारण भूमि की नमी में लगातार कमी के साथ-साथ,मिट्टी भी अपना स्थान

छोड़ने को विवश है,इसलिए लगातार वृक्षारोपण करते रहना होगा।

6.घर या संस्थानों से बाहर सार्वजानिक स्थानों,मंदिरों,अस्पतालों,उद्यानों,बाज़ारों आदि स्थानों पर लगे नलों की टूटी-फूटी दशा बिना बात ही प्रतिदिन हज़ारों लीटर पानी बेकार हो जाता है,इस बर्बादी को रोकने के लिए नगर-पालिकाओं को जिम्मेदारी लेनी होगी।

7.बड़े-बड़े औद्योगिक संस्थानों से उत्सर्जित होने वाले कचरों को नदियों में जाने से रोकना होगा,इसके विरुद्ध कड़े क़ानून बनाने होंगे।

8.बड़ी-बड़ी नदियों जिनमे सालों भर जल मिलता है (गंगा,यमुना आदि) इन नदियों की नियमित देखभाल और साफ़-सफाई नितांत आवश्यक है,जिनमे नगरों और महानगरों का गन्दा पानी जाकर इन्हें प्रदूषित करता है,जबकि इन्हें फ़िल्टर करके पीने योग्य बनाने की आवश्यकता है।

9.रेन वाटर हार्वेस्टिंग भी जल-संरक्षण की अति कारगर व्यवस्था है,इस तकनीक का प्रयोग निःसंदेह हमारी दिक्कतों को कम करने में अति सहायक सिद्ध हो सकता है।

10.आज विज्ञान की शक्ति अपार है और इसी विज्ञानं की मदद से समुद्र के खारे जल को भी पीने योग्य बनाया जा रहा है,और अगर ये पूरी तरह सफल हो जाए तो फिर जल की कोई समस्या ही नहीं रह जायेगी.लेकिन फ़िलहाल इस खारे जल का घरेलू कार्यों में प्रयोग करके शुद्ध जल का संरक्षण किया जा रहा है (गुजरात में एक-दो जगह )।

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