जमीन में पानी की गुणवत्ता ही शेतीचे उत्पादन आवर व कीमती वर परिणाम करते prakalpa nibandh
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प्राचीनकाल में अधिकांश सभ्यताओं का उदय नदियों के तट पर हुआ है, जो इस बात को इंगित करता है कि जल, जीवन की सभी आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिये अनिवार्य ही नहीं, बल्कि महत्त्वपूर्ण संसाधन भी रहा है। विगत कई दशकों में तीव्र नगरीकरण, आबादी में निरंतर बढ़ोतरी, पेयजल आपूर्ति तथा सिंचाई हेतु जल की मांग में वृद्धि के साथ ही औद्योगिक गतिविधियों के विस्तार इत्यादि ने जल-संसाधनों पर दबाव बढ़ा दिया है। एक ओर जल की बढ़ती मांग की आपूर्ति हेतु सतही एवं भूमिगत जल के अनियंत्रित दोहन से भूजल स्तर में गिरावट होती जा रही है तो दूसरी ओर प्रदूषकों की बढ़ती मात्रा से जल की गुणवत्ता एवं उपयोगिता में कमी आती जा रही है। अनियमित वर्षा, सूखा एवं बाढ़ जैसी आपदाओं ने भूमिगत जल पुनर्भरण को अत्यधिक प्रभावित किया है।
आज विकास की अंधी दौड़ में औद्योगिक गतिविधियों के विस्तार एवं तीव्र नगरीकरण ने देश की प्रमुख नदियों विशेष रूप से गंगा, यमुना, गोदावरी, कावेरी, नर्मदा एवं कृष्णा को प्रदूषित कर दिया है। जल की गुणवत्ता में गिरावट का एक प्रमुख कारण बढ़ता जल प्रदूषण है।
नवंबर 2019 को भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards-BIS) द्वारा जल की गुणवत्ता पर प्रकाशित रिपोर्ट में यह बताया गया है कि जल सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये अति आवश्यक है तथा बेहतर पारिस्थितिकी के निर्माण में इसकी भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता। रिपोर्ट द्वारा प्रदर्शित आँकड़ों ने एक बार पुनः जल की गुणवत्ता संबंधी प्रश्न को चर्चा के केंद्र में ला दिया है।
रिपोर्ट संबंधी प्रमुख तथ्य
जल जीवन मिशन के अंतर्गत वर्ष 2024 तक सभी को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने संबंधी उद्देश्य के तत्त्वावधान में भारतीय मानक ब्यूरो ने 21 महानगरों में जल की गुणवत्ता का परीक्षण करने के लिये सैंपल एकत्र किये।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में लिये गए जल के सैंपल भारतीय मानक ब्यूरो के परीक्षण में 28 मानकों में से 19 मानकों पर विफल साबित हुए।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि भारत एक गंभीर जल संकट की चपेट में है, जल की प्रति व्यक्ति उपलब्धता लगातार कम होती जा रही है।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में जनगणना 2011 के आँकड़ों के अनुसार, लगभग 33.41 लाख परिवार निवास करते हैं जिनमें से 27.16 लाख अर्थात 81.30% घरों में पाइप आपूर्ति प्रणाली के माध्यम से जल उपलब्ध कराया जाता है। हालाकि मात्र 75.20% घरों में ही उपचारित जल की आपूर्ति सुनिश्चित की जाती है।
वर्ष 2030 तक पेयजल आपूर्ति की मांग बढ़कर वर्तमान मांग (1508 क्यूबिक मीटर) से दोगुनी हो जाएगी।
भारतीय मानक ब्यूरो ने वर्ष 2018 में प्रकाशित नीति आयोग की रिपोर्ट के हवाले से बताया कि लगभग 600 मिलियन लोग गंभीर जल संकट का सामना कर रहे हैं। इसलिये स्वच्छ जल की गुणवत्ता मानवीय अस्तित्व के लिये बहुत आवश्यक है।