जमात वादाचा कोणता परिणाम होतो
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भारत में जाती प्रथा:-भारत में जाति प्रथा की शुरुआत आज से लगभग 2000 वर्ष पहले ही हो चुका है । तब से इसका रूप एक जैसा नहीं रहा,
Explanation:
१) ब्राह्मणों की प्रभुत्व में कमी--- जाति व्यवस्था के अंतर्गत परंपरा रूप से समाज में ब्राह्मणों का प्रभुत्व में कमी आई है।एक अलौकिक संस्था के रूप में नहीं देखा जाता है बल्कि इसमें मानव निर्मित रचना माना जाता है।और ब्राह्मणों को जन्मदाता माना जाता है, धार्मिक क्रियाओं और पूजा पाठ के महत्व के कारण ब्राह्मणों के परंपरा पर्वतों में कमी आई है।
(२) वैवाहिक संबंधों मे परिवर्तनन ::------अंतर विवाह जाति प्रथा सबसे कठोर नियम था ,इसके अनुसार व्यक्ति अपने जाति या उपजाति में ही विवाह करता था। परंतु विवाह संबंधी इस नियम परिवर्तन में अब परिवर्तन आई है 'इसके अलावा विवाह को जन्म जन्मांतर का बंधन नहीं माना जाता है ' अब विवाह विच्छेद भी होने लगा है।
(३) खान-पान के प्रतिबंधों में परिवर्तन::::--------जाति व्यवस्था के अंतर्गत एक जाति के सदस्य दूसरे जाति के सदस्य हाथों द्वारा नहीं खाते थे। साथ ही एक जाति के सदस्य एक साथ एक ही पंक्ति में बैठकर भोजन नहीं करते थे, 'उच्च जाति के लोग निम्न जाति के सदस्यों को अपने पंक्ति में बैठकर खाना खाने नहीं देते थे' इस प्रकार का व्यवहार विभिन्न पर्व ,उत्स्वो एवं विवाहो के अवसरों पर देखने को मिलता है, परंतु अब होटलों के तीनों में इस प्रकार व्यवहार देखने को नहीं मिलता है।
भारत वर्तमान हिन्दू समाज की एक प्रमुख विशेषता है। किन्तु यह कब और कैसे शुरू हुई, इस पर अत्यन्त मतभेद है।
कुछ लोगों का विचार है कि आधुनिक भारत में धर्म और जाति की सामाजिक श्रेणियां कैसे ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान विकसित की गई थी। इसका विकास उस समय किया गया था जब सूचना दुर्लभ थी और इस पर अंग्रेज़ों का कब्ज़ा था। यह 19वीं शताब्दी की शुरुआत में मनुस्मृति और ऋगवेद जैसे धर्मग्रंथों की मदद से किया गया था। 19वीं शताब्दी के अंत तक इन जाति श्रेणियों को जनगणना की मदद से मान्यता दी गई।[1]
जाति प्रथा का प्रचलन केवल भारत मे नही बल्कि मिस्र , यूरोप आदि मे भी अपेक्षाकृत क्षीण रूप मे विदयमान थी। 'जाति' शब्द का उदभव पुर्तगाली भाषा से हुआ है। पी ए सोरोकिन ने अपनी पुस्तक 'सोशल मोबिलिटी' मे लिख है, " मानव जाति के इतिहास मे बिना किसी स्तर विभाजन के, उसने रह्ने वाले सदस्यो की समानता एक कल्पना मात्र है।" तथा सी एच फूले का कथन है "वर्ग - विभेद वशानुगत होता है, तो उसे जाति कह्ते है "। इस विष्य मे अनेक मत स्वीकार किए गए है। राजनेतिक मत के अनुसार जाति प्रथा उच्च के ब्राह्मणो की चाल थी। व्यावसायिक मत के अनुसार यह पारिवारीक व्यवसाय से उत्त्पन हुई है। साम्प्रादायिक मत के अनुसार जब विभिन्न सम्प्रदाय संगठित होकर अपनी अलग जाती का निर्माण करते हैं, तो इसे जाति प्रथा की उत्पत्ति कहते हैं। परम्परागत मत के अनुसार यह प्रथा भगवान द्वारा विभिन्न कार्यों की दृष्टि से निर्मेत की गए है।[1]
#queen♥️
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abe mala sange na baby