jangal nabundi ke Karan regishthan Niemann hota he in hindi
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अधिकतर रेगिस्तान व्यापक जलवायु परिवर्तन के कारण बनते हैं। रेगिस्तानीकरण कोई नई परिघटना नहीं है अपितु इसका इतिहास तो बहुत पुराना है। संसार के विशाल रेगिस्तान अनेक प्राकृतिक क्रियाओं से गुजर कर, दीर्घ अंतराल के पश्चात ही निर्मित हुए हैं। रेगिस्तान स्थिर नहीं होते, कभी फैलते हैं तो कभी सिकुड़ते हैं और निश्चित रूप से इन पर मानव का कोई नियंत्रण नहीं है।
रेगिस्तानीकरण एक सीधी लाइन में अथवा दिशा में अपना दायरा नहीं फैलाता तथा इसको मापने की कोई निश्चित विधि भी नहीं है। धरती की उर्वरक क्षमता में ह्रास कोई साधारण व अनायास होने वाली प्रक्रिया नहीं है अपितु एक जटिल प्रक्रिया है। भूमि ह्रास का कोई एक निश्चित कारण भी नहीं है। किसी भी धरती का ह्रास करने में अनेक कारण सहायक हो सकते हैं। विभिन्न स्थानों की भूमि की उवर्रकता के ह्रास की गति भी एक समान नहीं होती है और अनेक स्थानों पर यह जलवायु पर निर्भर करती है। रेगिस्तानीकरण किसी भी क्षेत्र की जलवायु को प्रभावित कर अति शुष्क बना सकता है और वहां की स्थानीय जलवायु में परिवर्तन कर सकने में सहायक हो सकता है।
रेगिस्तान का विस्तार एक अनिश्चित प्रक्रिया है तथा यह भी आवश्यक नहीं कि जहां रेगिस्तानीकरण हो रहा है वहां निकट ही कोई रेगिस्तान उपस्थित हो। यदि लंबे समय तक किसी भी उपजाऊ धरती का प्रबंधन ठीक से नहीं होता है तब चाहे वह स्थान किसी रेगिस्तान से कितना ही दूरस्थ क्यों न हो उसका रेगिस्तानीकरण हो सकता है। रेगिस्तानीकरण के प्रभावों का तुरंत पता करना संभव नहीं है। हमको इस विषय में जानकारी तभी हो पाती है जबकि रेगिस्तानीकरण की प्रक्रिया एक निश्चित क्रियात्मक दौर से गुजर जाए। इसलिए ऐसी कोई विधि नहीं है जिससे कि हमें रेगिस्तानीकरण होने के समय की पारिस्थितिकी अथवा धरती की उर्वरकता की दर का ज्ञान हो सके। रेगिस्तानीकरण से संबंधित अनेक प्रश्न जैसे, रेगिस्तानीकरण की प्रक्रिया क्या भूमंडलीय परिवर्तन का सूचक है, क्या यह स्थाई अथवा अस्थाई है और पुनः यथा स्थिति में परिवर्तन करने योग्य है आदि का समाधान प्राप्त नहीं हो सकता है।