Hindi, asked by kej, 7 months ago

Jarne ke sondarya ka varnan kijiye? (2) Parvath pradesh me pavas Class 10

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Answered by Anonymous
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Answer:

गिरि का गौरव गाकर झर- झर

मद में नस -नस उत्तेजित कर

मोती की लड़ियों- से सुन्दर

झरते हैं झाग भरे निर्झर !

गिरिवर के उर से उठ -उठ कर

उच्चाकांक्षाओं से तरुवर

है झाँक रहे नीरव नभ पर

अनिमेष ,अटल कुछ चिंतापर।

गिरि - पहाड़

मद - मस्ती

झग - फेन

उर – हृदय

उच्चांकाक्षा - ऊँच्चा उठने की कामना

तरुवर -पेड़

नीरव नभ शांत - शांत आकाश

अनिमेष - एक टक

प्रसंग -: प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक 'स्पर्श - भाग 2' से लिया गया है। इसके कवि 'सुमित्रानंदन पंत जी 'हैं। इसमें कवि ने झरनों की सुंदरता का वर्णन किया है।

व्याख्या -: इस पद्यांश में कवि कहता है कि मोतियों की लड़ियों के समान सुंदर झरने झर झर की आवाज करते हुए बह रहे हैं ,ऐसा लग रहा है की वे पहाड़ों का गुणगान कर रहे हों। उनकी करतल ध्वनि नस नस में उत्साह अथवा प्रसन्नता भर देती है।

पहाड़ों के हृदय से उठ-उठ कर अनेकों पेड़ ऊँच्चा उठने की इच्छा लिए एक टक दृष्टि से स्थिर हो कर शांत आकाश को इस तरह देख रहे हैं, मनो वो किसी चिंता में डूबे हुए हों। अर्थात वे हमें निरन्तर ऊँच्चा उठने की प्रेरणा दे रहे हैं।

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