Political Science, asked by 77chandukumar, 7 months ago

जय प्रकाश नारायण के सर्वोदय से संबंधित विचार

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Answered by makulsaini9222
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लोकनायक जयप्रकाश नारायण एक राजनीतिक दार्शनिक की अपेक्षा एक सामाजिक दार्शनिक अधिक थे। उन्होंने जीवन भर साधारण जनता के कल्याण के लिए अपना सघर्ष किया। उन्होंने राजनीतिक भ्रष्टाचार को सभी सामाजिक समस्याओं की जड़ माना और समय-समय पर राजनीति में सुधारों के बारे में अपने मूल्यवान सुझाव दिए ताकि राजनीति में नैतिक साधनों का उचित प्रयोग किया जा सके। उन्होंने व्यवहारिक समस्याओं के अनुरूप ही राजनीतिक विचारों का प्रतिपादन करके भारतीय राजनीतिक चिन्तन के इतिहास में अपना अमूल्य योगदान दिया।

समाजवाद की अवधारणा

अपने अमेरिकी प्रवास के दौरान जयप्रकाश नारायण ने लेनिन तथा मार्क्स के साम्यवादी साहित्य का अध्ययन किया और भारत आने पर उनकी सोच मार्क्सवादी बन गई। उन्होंने 1936 में ‘Why Sociaism’ पुस्तक की रचना की। इस पुस्तक के माध्यम से उन्होंने समाजवाद की भारतीय सन्दर्भ में व्याख्या की तथा भारत में इसकी उपयोगिता पर बल दिया। उन्होंने समाजवाद को लोकप्रिय बनाने के लिए जीवनभर संघर्ष किया। उनका मानना था कि आर्थिक असमानता और उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व ही सब समस्याओं की जड़ है। यदि ये साधन प्रत्येक व्यक्ति को उपलब्ध करा दिए जाएं तो वर्तमान आर्थिक विषमताएं स्वत: ही समाप्त हो जाएंगी। उन्होंने समाजवादी समाज की स्थापना पर अपनी पुस्तक ‘Why Socialism’ में विस्तारपूर्वक वर्णन किया और उद्योग एवं कृषि के क्षेत्र में उन उपायों का सुझाव दिया, जिनसे उत्पादन के साधनों का पुन: वितरण कर आर्थिक समानता स्थापित की जा सके। उनका विचार था कि उद्योगों के राष्ट्रीयकरण मात्र से ही समाजवाद की स्थापना सम्भव नहीं है। इससे नौकरशाही के हाथ मजबूत होते हैं तथा केन्द्रीयकरण की प्रवृत्ति बढ़ती है। इसी तरह बड़े स्तर के उद्योग की आर्थिक विषमता को बढ़ावा देते हैं, कम नहीं करते। इसलिए उन्होंने विकेन्द्रीकरण का सुझाव दिया और छोटे-छोटे उद्योगों की आर्थिक विषमता दूर करने में सहायक बताया, उन्होंने कृषि के क्षेत्र में भी समाजवाद का अर्थ स्पष्ट करते हुए बताया कि भूमि का स्वामित्व जोतने वालों के हाथ में में हो, जमींदारी प्रथा को समाप्त किया जाए तथा सहकारी कृषि को बढ़ावा दिया जाए। इसके अतिरिक्त सहकारी ऋण तथा बाजार व्यवस्था आदि के माध्यम से किसानों को साहूकारों व व्यापारियों के शोषण से मुक्त किया जाए।

इस तरह उन्होंने कृषि तथा उद्योग दोनों में ही उत्पादन के साधनों के विकेन्द्रीकरण पर जोर दिया। उन्होंने कृषि उद्योगों के समाजीकरण के लिए नैतिक व लोकतांत्रिक साधनों का सुझाव दिया। उनका मानना था कि समाजवाद जैसे उच्च आदर्श की स्थापना उचित साधनों के द्वारा ही होनी चाहिए। लेकिन सच्चे समाजवाद की स्थापना भारत को तब तक नहीं हो सकती, जब तक भारत विदेशी दासता का शिकार रहेगा। विदेशी दासता को समाप्त करने के लिए श्रमिकों, किसानों और गरीब मध्यम वर्गों में राजनीतिक चेतना का विकास किया जाए। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘Why Socialism’ में लिखा है-’’कोई भी दल समाजवाद की स्थापना तब तक नहीं कर सकता, जब तक वह राज्य की शक्ति अपने हाथ में न ले लें। चाहे वह से जनता के समर्थन से प्राप्त करें या सरकार गिरा कर। यदि सम्भव हो तो इस ध्येय को जन समर्थन द्वारा ही प्राप्त किया जाना चाहिए।’ उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि जब किसान, दलित, गरीब सभी कमजोर वर्गों में वर्ग-चेतना का उदय होगा तो समाजवाद की स्थापना हो जाएगी, उन्होंने यह भी कहा कि वर्ग चेतना के साथ-साथ व्यक्ति को अपनी भौतिक आवश्यकताओं पर भी नियन्त्रण करना होगा। इसके बिना समाजवादी समाज की स्थापना सम्भव नहीं है। उन्होंने कहा कि समाजवाद भारतीय संस्कृति का विरोधी नहीं है। यह उसके अनुरूप ही है। माक्र्स का समाजवाद भारतीय संस्कृति के ही मूल आदर्शों-सदा मिल-जुलकर बांटना व उपभोग करना, निम्न कोटि की वासनाओं तथा परिग्रह की वृत्ति से मुक्ति के अनुरूप ही विकसित हुआ है। इसलिए समाजवाद भारतीय संस्कृति को विरोधी कहना भ्रामक है।

Answered by singhrangareashi
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जय प्रकाश नारायण की पहचान एक ऐसे राजनेता व राजनितिक चिंतक के रूप  में की जाती है जिन्होंने सर्वोदय के विचारो का प्रबल समर्थक माना जाता है। इस सम्बन्ध में उनका मानना था की समाज के प्रत्येक समूह के उथान के बिना विकास विकास की बात नही की जा सकती है.उनका कहना था की समाज के प्रमुख लक्ष्य सवतंत्रता , समानता व बंधुत्व को हासिल करने के लिए सर्वोदय के साथ जोड़ना बहुत जरूरी है। इसके बिना समाजवाद व् लोकतंत्र का कोई औचित्य  नहीं है।

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