jeevan mai haasya ka mahatva....i want hindi essay on this topic in simple words ..please help me...!
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हास्यरस का जीवन में विशेष महत्व है। जीवन की एक-रसता से ऊबकर मानव ह्रदय हँसना चाहता है। वह अपना मनोविनोद चाहता है। एक विद्वान विचारक ने कहा है कि जिस प्रकार हमारे दैनिक जीवन में अन्य जीवनोपयोगी वस्तुओं की आवश्यकता है, उसी प्रकार हास्य की भी।मनुष्य को इसके लिये एक निश्चित समय रखना चाहियें। हँसने से धमनियों से रक्त-संचार होता है , रक्त की गति में तीव्रता आती है। हास्य के लिया निःसन्देह मित्र-मंडली की आवश्यकता होती है। एकाकी व्यक्ति न अकेला हँस सकता है और न ही मनोविनोदकर सकता है। ऐसी अवस्था में हास्य-रस की रचनाएँ आपका मनोविनोद कर सकती हैं , आपका मन बहला सकती हैं। आधुनिक युग में हास्य रस की कविताएँ, नाटक,कहानियाँ और चुटकले प्रस्तुत किये जा रहे है। पं० गोपालप्रसाद व्यास ने हास्य-रस की कविता के क्षेत्र में प्रसिद्धि प्राप्त की है। वैसे बेढब बनारसी ,देवराज दिनेश , काका हाथरसी आदि कवि भी हास्य-रस के खजाने को भरने में प्रयत्नशील रहे। व्यास जी का “पत्नीवाद”जनता में बड़ा प्रसिद्ध हो गया था, जिसकी प्रथम पँक्तियां हैं—-
यदि ईश्वर पर विश्वास न हो , उससे कुछ फल की आस न हो
तो अरे नास्तिकों
घर बैठो
साकार ब्रह्म को पहचानो , पत्नी को परमेश्वर मानो।
हसँने से मनुष्य के स्वास्थ्य में वृद्धि होती है। दिन मेम चार या छः बार खिलखिला कर हँस लेने वाला व्यक्ति कम बीमार पड़ता है। अँसने से फेफड़ों का व्यायाम होता है और मन प्रसन्न होता है। अतः हास्य मानव-जीवन को सुखमय और स्वस्थ रखने के लिये परमावश्यक है। जिन मनुष्यों में हँसी का अभाव होता है वे सदैव रुग्ण बने रहते हैं । हास्य सामाजिक सुधार करने में भी पर्याप्त सहयोग प्रदान करता है। बड़े बड़े घनिष्ट मित्रों में वैमनस्य हो जाता है, मार-पीट पर नौबत आ जाती है। अतः शूद्ध हास्य ही श्रेयस्कर है।
यदि ईश्वर पर विश्वास न हो , उससे कुछ फल की आस न हो
तो अरे नास्तिकों
घर बैठो
साकार ब्रह्म को पहचानो , पत्नी को परमेश्वर मानो।
हसँने से मनुष्य के स्वास्थ्य में वृद्धि होती है। दिन मेम चार या छः बार खिलखिला कर हँस लेने वाला व्यक्ति कम बीमार पड़ता है। अँसने से फेफड़ों का व्यायाम होता है और मन प्रसन्न होता है। अतः हास्य मानव-जीवन को सुखमय और स्वस्थ रखने के लिये परमावश्यक है। जिन मनुष्यों में हँसी का अभाव होता है वे सदैव रुग्ण बने रहते हैं । हास्य सामाजिक सुधार करने में भी पर्याप्त सहयोग प्रदान करता है। बड़े बड़े घनिष्ट मित्रों में वैमनस्य हो जाता है, मार-पीट पर नौबत आ जाती है। अतः शूद्ध हास्य ही श्रेयस्कर है।
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