jhutha sach ka saransh
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झूठा सच (1958-60) हिन्दी के सुप्रसिद्ध कथाकार यशपाल का सर्वोत्कृष्ट एवं वृहद्काय उपन्यास है। 'वतन और देश' तथा 'देश का भविष्य' नाम से दो भागों में विभाजित इस महाकाय उपन्यास में विभाजन के समय देश में होने वाले भीषण रक्तपात एवं भीषण अव्यवस्था तथा स्वतन्त्रता के उपरान्त चारित्रिक स्खलन एवं विविध विडम्बनाओं का व्यापक फलक पर कलात्मक चित्र उकेरा गया है। यह उपन्यास हिन्दी साहित्य के सर्वोत्तम उपन्यासों में परिगण्य माना गया है।
Hope its right.!
|| हर हर माहादेव ||
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झूठा सच' देश विभाजन और उसके परिणाम के चित्रण की काफी ईमानदारी से लिखी गई कहानी है। पर यह उपन्यास इसी कहानी तक ही सीमित नहीं है। देश-विभाजन की सिहरन उत्पन्न करने वाली इस कहानी में स्नेह, मानसिक और शारीरिक आकर्षण, महात्वाकांक्षा, घृणा, प्रतिहिंसा आदि की अत्यंत सहज प्रवाह से बढ़ने वाली मानवता पूर्ण कहानी भी आपको मिलेगी।