jivan ka vastavik sar kya hai?
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जिंदगी कोरा कैनवास है, हम रंग भरेंगे तो चित्र बनेगा--सुंदर या कुरूप--हम पर निर्भर है। जीवन असार व्यतीत हो सकता है यदि कला नहीं सीखी तो। जैसे चकमक पत्थर को रगड़ने से आग पैदा हो जाती है, ऐसे ही जरा भीतर रगड़ को जगाओ, ध्यान की युक्ति सीखो और तुम्हारे भीतर भी ज्योति जल उठे! वरना माटी के दीपक में कहां सार खोजते हो?
जैसे दही को मथ कर तुम दूध से दही बनाते, दही को मथ कर तुम घी बना लेते, ऐसे ही थोड़े-से मंथन की जरूरत है कि तुम्हारे भीतर जीवन का सार, तुम्हारे भीतर जीवन की परम उपलब्धि फलित हो जाये। तुम्हारे भीतर चैतन्य का स्वर्ण-फूल खिले। तुम्हारे भीतर ही छिपा है वह खजाना, जिसे तुम खोजने चले हो। जरा सी ध्यान में डुबकी और वहीं प्रगट हो जायेगी आत्मा, सुनाई पड़ने लगेगा परमात्मा का संगीत--ओंकार। उस अनाहत नाद में सार है, अर्थ है, शांति है, आनंद है। उसके बिना सब व्यर्थ हैं--धन, पद, यश, प्रतिष्ठा, ज्ञान, प्रेम संबंध, नाम--सब निरर्थक हैं। जीवन का सार ‘रेडीमेड’ नहीं है। निर्मित करना होगा। ध्यान की कला सीखनी होगी। समाधि में डूबना होगा। परमात्मा को जानना होगा।
मानव जीवन जैसा है, वह सितार जैसा है। बजाने की विद्या सीखो, निपुण बनो, फिर संगीत रूपी सार उत्पन्न होता है।