Biology, asked by mayasoni162, 1 year ago

jnm ke samy shishuo ke bhitar kitne sanveg paye jate hai​

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Answered by boythebest24
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र्व बाल्यावस्था में सांवेगिक  अनुभूतियों का विस्तार होता है| मुख्य रूप में उद्वेग, तीव्र भय एवं इर्ष्या, अतिरंजित रूप से व्यक्त होते हैं| शैशवावस्था के अपेक्षा इस अवस्था में संवेगों के विविक्तिकरण की परिपूर्णता के साथ-साथ उनकी अभिव्यक्ति भी स्पष्ट  होने लगती है| चूँकि इस अवस्था में बच्चे अतिक्रियाशील होते हैं, अतः खेलने, दौड़ने, कूदने तथा उछलने के कारण उत्पन्न थकान से बच्चों में तीब्र संवेगशीलता उत्पन्न होती है| बालक अपने को अतिसक्षम आँकते हैं तथा माता-पिता द्वारा उनकी क्षमता से परे के कार्यों को करने के लिए मना करने पर अपने ऊपर लगाये गए अंकुश का विरोध करते हैं| इसके अतिरिक्त वे जब किसी कार्य को सफलतापूर्वक सम्पन्न नहीं कर पाते तो क्रुद्ध हो जाते हैं|

इस अवस्था में बालक का सामाजिक परिवेश विस्तृत हो जाता है| अब वह पास पड़ोस के बच्चों के साथ खेलना आरंभ कर देता है| अतः बच्चे में समायोजन की समस्या उत्पन्न होने की प्रबल संभावना होती जिससे वह तनाव का अनुभव करता है| बालक जितना छोटा और  अनुभवहीन होगा, तनाव के उत्पन्न होने की संभावना उतनी ही अधिक होगी|

संवेगों का विकास यद्यपि अनुक्रम में चलता है तथापि इसके संरूप में भिन्नता विभिन्न अंतरालों तथा वैयक्तिक भिन्नताओं के कारण पाई जाती है| वे बालक जिसका पालन पोषण शैशवावस्था में शांत परिवेश में हुआ हो तथा जिनकी आवश्यकताएँ तुरंत पूरी कर दी जाती रही हों, वे बच्चे समृद्ध परिवेश में पले-बढे बालकों की अपेक्षा कम संवेगात्मक अनुभूतियां प्रदर्शित करते हैं| वे बालक जिनको माता से अति  वात्सल्य मिला होता है, वे अपनी माता द्वारा नवजात सहोदर की देख-रेख करते देखकर क्रोध और इर्ष्या की तीव्र संवेगात्मक अनुभूतियाँ प्रकट करते हैं| इसे बाल वैमनस्यता कहा जाता है|

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