(क) ऐन्द्रजालिकः कदा किं च वदति स्म?
(ख) सर्वे कदा विस्मिताः अयच्छत्?
(ग) ऐन्द्रजालिकः कति कपोतान् अमुञ्चत्?
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उसके बाद उस परमपद-(परमात्मा-) की खोज करनी चाहिये जिसको प्राप्त होनेपर मनुष्य फिर लौटकर संसारमें नहीं आते और जिससे अनादिकालसे चली आनेवाली यह सृष्टि विस्तारको प्राप्त हुई है, उस आदिपुरुष परमात्माके ही मैं शरण हूँ।
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