(क) बोली को अनमोल क्यों कहा गया है? (ख) साधु की पहचान कैसे होती है? (ग) जिस दोहे में निंदक का महत्व बताया गया है, वह दोहा अर्थ सहित लिखो। (घ) 'जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान' इस पंक्ति का संदेश संक्षेप में लिखो। -
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Explanation:(क)-- भावार्थ: जो व्यक्ति अच्छी वाणी बोलता है वही जानता है कि वाणी अनमोल रत्न है। इसके लिए हृदय रूपी तराजू में शब्दों को तोलकर ही मुख से बाहर आने दें।
(ख)-- सच्चा साधु तो हर जगह केवल परम प्रभु की कृपा का ही चमत्कार देखता है। कभी उसका श्रेय स्वयं नहीं लेता। 'दमस्कार' के दूर रहने का अर्थ है कि सच्चा साधु कभी अपने लिए धन एकत्र नहीं करता और न किसी से धन की याचना करता है। वह केवल अपनी आवश्यकता की न्यूनतम वस्तुएं माँग सकता है, कोई संग्रह नहीं करता।
(ग) --जहां तक मुझे याद है यह दोहा Kabir Das Ji द्वारा लिखा गया है, निंदक नियरे रखिए अर्थात जो आपकी निंदा करता है आप उसे अपने साथ रखिए आगन कुटी छावाय इसका शाब्दिक अर्थ है कि आप उनको अपने घर में रखिए और इसका अर्थ यह है कि आप उनको अपने हृदय के करीब रखें अर्थात आप उनको सुनिए, वो क्या कहना चाहते हैं।
बिन पानी साबुन बिना निर्मल करे सुहाय अर्थात जैसे आप अपने शरीर को साफ रखने के लिए स्नान करते है वैसे ही ये लोग भी ये बिना साबुन और पानी के भी आपके शरीर को साफ कर सकते है मतलब यह लोग आपके अंदर की कमी को आपके सामने लाते है जिससे आप उसे दूर करके के खुद को साफ अर्थात पहले से उन्नत कर सकते हैं।
(घ) -- दोहे का हिंदी मीनिंग: धार्मिक आडंबरों के साथ ही कबीर साहेब के समय की एक विडंबना रही हिन्दू धर्म जातिगत संघर्ष का भी शिकार था। लोग एक जाति विशेष के संत / गुरु और तपस्वी को जन्मजात मान्यता देते थे जिसका कबीर साहेब ने तीखा विरोध किया और जातिगत और जन्म आधार पर किसी को श्रेष्ठ मानने से स्पष्ट इंकार कर दिया। किसी भी जाति में ज्ञानी हो सकता है, ऊँची जाति से सबंध रखने वाला कोई भी व्यक्ति भ्रष्ट हो सकता है। कबीर साहेब जब लोगों को समझाते थे तो कुछ लोग यह प्रचार करते थे की यह (कबीर) इस आधार पर ज्ञान बाँट सकता है ? यह तो खुद ही निर्गुणी है और इसका कोई गुरु भी नहीं है। इसी के चलते कबीर साहेब को भी रामानंद को अपना गुरु बनाना पड़ा।