क-भागस्थपदैः सह ख-भागस्यार्थानां मेलनं क्रियताम्
क ख
विद्यागमः विदुषाम्
व्यसने शोभाम्
सविद्यानाम् विद्याप्राप्तिः
द्युतिम् पुष्पगुच्छस्य
कुसुमस्तबकस्य विपत्तौ
मूर्धिन कल्याणम्
भूतिम् शिरसि
Answers
क ख
विद्यागमः → विद्याप्राप्तिः
व्यसने → विपत्तौ
सविद्यानाम् → विदुषाम्
द्युतिम् → शोभाम्
कुसुमस्तबकस्य → पुष्पगुच्छस्य
मूर्ध्नि → शिरसि
भूतिम् → कल्याणम्
अतिरिक्त जानकारी :
प्रस्तुत प्रश्न पाठ सूक्तिसुधा (सुवचन-अमृत) से लिया गया है। इस पाठ का संकलन आचार्य चाणक्य की विश्वविख्यात रचना "चाणक्यनीति" और नारायण पंडित की रचना हितोपदेश" से किया गया है।
आचार्य चाणक्य की कविता जीवन को मूल्यवान बनाने के लिए सर्वोत्तम है। श्लोक एक से तीन में निवास करने योग्य स्थान, सच्चे दोस्त और सद्गुणों के महत्त्व का वर्णन किया गया है। श्लोक चार से आठ लाभदायक व जीवनोपयोगी उपदेशों का बखान करते हैं-अनपढ़ मनुष्य का चालाक होना, तपस्वी लोगों का आचरण, व्यवहार, पुरुष के छः दोषों का वर्णन व सांसरिक सुखों का वर्णन। जीवन को सुखी लक्ष्यपूर्ण बनाने के लिए कुछ जीवन मूल्यों की निहायत जरूरत होती है। अतएव ये नीति संबंधी उपदेश जीवन को संस्कारपूर्ण और अर्थपूर्ण बनाने में ये श्लोक अवश्य ही सहायक होंगे।
इस पाठ से संबंधित कुछ और प्रश्न :
उदाहरणानुसारं विग्रहपदानि आधृत्य समस्तपदानि रचयत
विग्रहधदानि समस्तपदानि
यथा- विद्यायाः आगमः = विद्यागमः
राज्ञः द्वारे =
सतां सन्निधानेन =
काञ्चनस्य संसर्गात् =
अर्थस्य आगमः =
जीविताय इदम् =
न रोगिता =
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संस्कृतेन उत्तरं देयम्
(क) अयं पाठः काभ्यां ग्रन्थाभ्यां संकलित:?
(ख) कुत्र वास: न कर्त्तव्यः?
(ग) बान्धवः कुत्र कुत्र तिष्ठति?
(घ) काचः कस्य संसर्गात् मारकतीम् द्युतिं धत्ते।
(ङ) प्राज्ञः परार्थे किं किं उत्सृजेत्?
(च) मूर्खः कथम् प्रवीणताम् याति?
(छ) परुषेण के षड् दोषाः हातव्या:?
(ज) जीवलोकस्य षट् सुखानि कानि सन्ति?
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