(क) भोर तें साँझ लौ कानन ओर निहारति बावरी नेकु न हारति।
साँझ तें भोर लौ तारनि ताकिबो तारनि सों इकतार न टारति।।
जो कहूँ भावतो दीठि परे घन आनंद आँसुनि औसर गारति।
मोहन-सोहन जोहन की लगियै रहै आँखिन के उर आरति।।
(ख) अति सूधो सनेह को मारग है जहाँ नेकु सयानप बाँक नहीं।
तहाँ साँचे चलें तजि आपनपौ झिझकै कपटी जे निसाँक नहीं।।
घन आनंद प्यारे सुजान सुनौ यहां एक ते दूसरो आँक नहीं।
तुम कौन धौ पाटी पढ़े हौ लला, मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं।।
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It's bhramar geet Of Surdas
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