कुंडलियां छंद की विशेषता बताइये ? ' गिरधर की कुंडलियां ' पाठ से एक पद लिखिए
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¿ कुंडलियां छंद की विशेषता बताइये ? 'गिरधर की कुंडलियां' पाठ से एक पद लिखिए।
✎... कुंडलिया एक मात्रिक छंद होता है, जो दोहा और रोला छंद के संयोग से बनता है। कुंडलिया छंद में दोहे का अंतिम चरण रोले का पहला चरण होता है, यानी दोहा और रोला छंद एक दूसरे से कुंडलित रहते हैं। इसी कारण इस छंद को कुंडलिया छंद कहा जाता है। एक अच्छे कुंडलिया छंद में जिस शब्द से वह प्रारंभ होता है, उसी शब्द पर समाप्त भी होता है। गिरधर की कुंडलियां पाठ का एक छंद इस प्रकार है...
बीती ताहि बिसारि दे, आगे की सुधि लेइ।
जो बनि आवै सहज में, ताही में चित देइ॥
ताही में चित देइ, बात जोई बनि आवै।
दुर्जन हंसे न कोइ, चित्त मैं खता न पावै॥
कह ‘गिरिधर कविराय यहै करु मन परतीती।
आगे को सुख समुझि, होइ बीती सो बीती॥
व्याख्या ➲ गिरिधर कविराय कहते हैं कि जो बात बीत गई है, उसे भूल जाओ और बीती हुई बातों को भूलकर आगे की सोचो। जो बीत गया है उसे याद करने से कोई लाभ नहीं होने वाला। अपना मन उसी में लगा जिसमें मन लगता है, अपना मनमाफिक कार्य करने से कार्य में सफलता जरूर मिलती है। जो बुरे लोग होते हैं, वह अगर आप पर हंसते हैं, तो उसकी चिंता मत कर। बुरे लोगों का काम हमेशा मजाक उड़ाना ही है बल्कि उनकी परवाह ना कर अपने काम में लगे रहने से काम में सफलता अवश्य प्राप्त होती है। बीती बातों को भूलकर आगे की सोचना ही सुख की नींव रखता है।
इस कुडंलिया छंद में जिस शब्द से छंद का आरम्भ हो रहा है, उसी शब्द से इसकी समाप्ति भी हो रही है। ये कुंडलिया छंद की विशेषता है।
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संबंधित कुछ और प्रश्न —▼
साई अपने चित्त की, भूलि न कहिए कोइ।
तब लग मन में राखिए, जब लग कारज होइ।।
जब लग कारज होइ, भूलि कबहूँ नहिं कहिए।
7 दुरजन हँसे न कोइ, आप सियरे वै रहिए।।
कह गिरिधर कविराय, बात चतुरन की ताईं।
करतूती कहि देत, आप कहिए नहि साईं।।
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