कुएँ में उतरकर चिट्ठियों को निकालने संबंधी साहसिक वर्णन को अपने शब्दों में लिखिए।
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कुएँ में चिट्ठियाँ गिर जाने पर लेखक ने रोना-धोना छोड़कर भयानक निर्णय लिया। उसने अपनी और अपने छोटे भाई की पाँचों धोतियों को एक-दूसरे से बाँधा। इसके एक छोर में डंडा बाँधकर उसे कुएँ में उतार दिया और दूसरे सिरे को कुएँ की डेंग में बाँधकर भाई को पकड़ा दिया। अब उन धोतियों के सहारे लेखक कुएँ में उतर गया और कुएँ के धरातल से चार पाँच गज ऊपर लटककर साँप को देखने लगा। साँप भी फन फैलाए लेखक की प्रतीक्षा कर रहा था। लेखक ने कुएँ की दीवार में पैर जमाकर कुछ मिट्टी गिराई। इससे साँप का ध्यान बँट गया। वह मिट्टी पर मुँह मार बैठा।
इस बीच लेखक ने डंडे से जब चिट्ठियाँ सरकाईं तो साँप ने जोरदार प्रहार किया और अपनी शक्ति के प्रमाण स्वरूप डंडे पर तीन-चार जगह विषवमन कर दिया। इससे लेखक का साहस बढ़ा। उसने चिट्ठियाँ उठाने का प्रयास किया तो साँप ने वार किया और डंडे से लिपट गया। इस क्रम में साँप की पूँछ का पिछला भाग लेखक को छू गया। यह देख लेखक ने डंडे को पटक दिया और चिट्ठियाँ उठाकर धोती में बाँध दिया, जिन्हें उसके भाई ने ऊपर खींच लिया। अब लेखक ने कुएँ की दीवार से कुछ मिट्टी साँप की दाहिनी ओर फेंकी। साँप उस पर झपटा। अब लेखक ने डंडा खींच लिया। लेखक ने मौका देखा और जैसे-तैसे हाथों के सहारे सरककर छत्तीस फुट गहरे कुएँ से ऊपर आ गया।
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