Hindi, asked by raviservicesbalaghat, 4 months ago

कांग्रेस अधिवेशन के समय क्या घटना घटी?​

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Answered by ramjiagnihotri18
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Explanation:

1907 के कांग्रेस के सूरत विभाजन का कारण पार्टी में दो विचारधाराओं का जन्म लेना था जिसकी शुरुआत 1905 के बनारस अधिवेशन में ही हो गई थी जब गोपाल कृष्ण गोखले की अध्यक्षता में अधिवेशन हुआ तो बाल गंगाधर तिलक ने उदारवादियों की "याचिका एवं याचना की नीति" का कड़ा विरोध किया। उनका मत था कि स्वदेशी आन्दोलन का विस्तार पूरे देश में किया जाए तथा सभी वर्गों को सम्मिलित करके राष्ट्रव्यापी आन्दोलन आरम्भ किया जाए परन्तु उदारवादी इसे बंगाल तक ही सीमित रखना चाहते थे और वो अन्य पक्षों को इसमें शामिल करने के पक्षधर नहीं थे। उग्रवादी चाहते थे कि उनके प्रस्तावों को सर्वसम्मति से मान लिया जाए परन्तु उदारवादी संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करने पर तुले थे। इसका मध्य मार्ग निकालते हुए कांग्रेस ने स्वदेशी आन्दोलन के समर्थन को स्वीकार कर लिया जिससे विभाजन कुछ समय तक टल गया।

दिसम्बर 1906 में अध्यक्ष पद को लेकर कलकत्ता अधिवेशन में एकबार फिर मतभेद उभरकर सामने आया। उग्रवादी नेता, बालगंगाधर तिलक या लाला लाजपत राय में से किसी एक को अध्यक्ष बनाना चाहते थे जबकि नरमपंथी डा० रास बिहारी घोष के नाम का प्रस्ताव लाये। अन्त में दादा भाई नौरोजी को अध्यक्ष बनाकर विवाद को शान्त किया गया। इस अधिवेशन में कांग्रेस ने प्रथम बार 'स्वराज' की बात कही। इस अधिवेशन से गरमपंथियों की लोकप्रियता काफी बढ़ गई तथा नरमपंथीयों की लोकप्रियता में कमी आई। इसे देखते हुए नरमपंथीयों को लगा कि गरमपंथियों के उग्र अभियानों से जुड़ना उनके लिए उचित नहीं है क्योंकि उग्रवादी ब्रिटिश सरकार को हटाने पर तुले हुए हैं। नरमपंथीयों ने तर्क दिया कि उग्रवादियों के दबाव में कांग्रेस को जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाना चाहिए जिससे भारतीयों को नुकसान पहुंचे। उदारवादी नेता उग्रवादियों को सन्देह की दृष्टि से देखने लगे। उन्हें लगता था कि उग्रवादियों द्वारा उठाए गए कदमों से स्वतंत्रता आंदोलन पर गलत प्रभाव पड़ेगा।

उग्रवादी 1907 का अधिवेशन नागपुर में आयोजित कराना चाहते थे और बाल गंगाधर तिलक या लाला लाजपतराय को अध्यक्ष बनाना चाहते थे परन्तु नरमपन्थी अधिवेशन सूरत में आयोजित कराने को लेकर अड़े रहे तथा स्थानीय नेता को अध्यक्ष बनाने से इंकार किया। साथ ही उदारवादियों ने स्वदेशी आन्दोलन को वापस लाने की वकालत शुरू कर दी। उन्होंने रासबिहारी घोष को अध्यक्ष घोषित कर दिया। इन कारणों से कांग्रेस में विभाजन हो गया। मुख्य गरमपंथी नेता बालगंगाधर तिलक को अंग्रेजों ने गिरफ्तार करके मांडले जेल (बर्मा) भेज दिया जिससे उग्रवादी आन्दोलन कुछ समय के लिए कमजोर पड़ गया परन्तु 1914 में बाल गंगाधर तिलक के जेल से वापस आने पर आन्दोलन दोबारा शुरू हो गया।

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