काँग्रेस के काल को कितने चरणों में बाँटा जा सकता है। प्रत्येक चरण की विस्तारपूर्वक व्याख्या करें।
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कांग्रेस के काल को दो चरणों में बांटा जा सकता है। प्रथम चरण 1885-1890 ईस्वी का काल, जिसे उदारवादी राजनीति का युग कहा जाता है और दूसरा चरण 1905 से 1919 ईस्वी तक का चरण जिसे चरमपंथी या गरमपंथी युग कहा जाता है।
प्रथम चरण (नरमपंथी युग) — कांग्रेस के प्रथम चरण के काल में दादाभाई नैरोजी, फिरोजशाह मेहता, दीनशा वाचा, व्योमेश चंद्र बनर्जी और सुरेंद्र नाथ बनर्जी जैसे उदारवादी नेता थे। जो कांग्रेस की राजनीति पर अपना वर्चस्व रखते थे। यह उदारवादी नेता अंग्रेजी साम्राज्य के बने रहने के पक्ष में थे। इन लोगों को लगता था कि अंग्रेजी साम्राज्य चला गया तो चारों तरफ अव्यवस्था फैल जाएगी। यह लोग मानते थे कि अंग्रेजी लोग न्याय प्रिय लोग हैं, यह लोग भारत के लोग के न्याय ही करेंगे। इस कारण इन नरमपंथी लोगों ने कभी भारत की स्वतंत्रता की पुरजोर मांग नहीं की, बल्कि भारतीयों के लिए केवल कुछ सुविधाओं की ही मांग की।
दूसरा चरण (गरमपंथी युग) — गरमपंथी चरण 19वीं शताब्दी के अंतिम समय से बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध के वर्षों का रहा है, जब राष्ट्रवादी विचारधारा के लोगों का कांग्रेस में अधिपत्य बढ़ने लगा। लोकमान तिलक समाज सुधार के प्रश्न पर नरमपंथी दल और गरम पंथी दल का आपस में झगड़ा हो गया और कांग्रेस में फूट पड़ गई। एक तरफ महात्मा गांधी, नेहरू, पटेल जैसे उदारवादी नरमपंथी नेता थे। तो दूसरी तरफ तिलक, गोखले, लाला लाजपत राय जैसे गरमपंथी विचारों वाले नेता थे। तिलक का कहना था कि स्वराज के बिना कोई भी सामाजिक सुधार नहीं हो सकता और स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। गरमपंथी दल के चार प्रमुख नेता थे, लोकमान्य तिलक, बिपिन चंद्र पाल, लाला लाजपत राय और अरविंद घोष। गरम पंथी दल के नेताओं ने आंदोलन कर विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया और स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने पर जोर दिया।