(क) घर का भेदी लका ं ढाये (ख) जािह िनकािरयो गेह ते कस न भेद किह देय
(ग) घर का जोगी जोगड़ा आन गाँव का िसद्ध (घ) सबहु का भला
ू शाम को घर आए तो भला
ू
नहीं कहाता
Answers
प्रश्न में दिए गए मुहावरे इस प्रकार हैं...
(क) घर का भेदी लंका ढाये।
(ख) जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कहि।
(ग) घर का जोगी जोगड़ा आन गाँव का सिद्ध।
(घ) सुबह का भूला शाम को घर आए तो भूला नही कहते।
इन मुहावरों के अर्थ इस प्रकार होंगे...
(क) घर का भेदी लंका ढाये।
अर्थ ➲ आपसी मदभेद से कोई तीसरा फायदा उठा ले या कोई अपना ही घर का सदस्य या विश्वसनीय व्यक्ति ही दूसरों पर राज खोल दे।
वाक्य प्रयोग : राजेश चंद पैसों के लालच में अपनी कंपनी के गुप्त रहस्यों को प्रतिद्वंदी कंपनी को देता रहा, जिससे प्रतिद्वंदी कंपनी फायदा उठाती रही, इसे कहते हैं घर का भेदी लंका ढाये।
(ख) जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कहि।
अर्थ : किसी अपने को घर से निकालने पर वह घर का भेद सब से कह देता है।
वाक्य प्रयोग : रमेश को जरा सी गलती पर उसके मालिक ने नौकरी से निकाल दिया, तो रमेश ने मालिक के प्रतिद्वंदी के यहाँ नौकरी कर ली और अपने पूर्व मालिक की सारी कमजोरिया वहाँ उजागर कर दीं, जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कहि।
(ग) घर का जोगी जोगड़ा आन गाँव का सिद्ध।
अर्थ : अपने ही घर में अपने गुण की कद्र नही होती बाहर होती है।
वाक्य प्रयोग : योग महत्व हम भारतीय तब तक नही समझ पाये जब तक विदेशों में इसको लोकप्रियता नही मिली। घर जोगी जोगड़ा आन गाँव का सिद्ध।
(घ) सुबह का भूला शाम को घर जा जाये, उसे भूला नही कहते।
अर्थ : अपनी गलती का अहसास होने सुधार लेना बुरी बात नही है।
वाक्य प्रयोग : राहुल जब अपनी लापरवाही के कारण परीक्षा में फेल हो गया तो उसे अपनी गलती का अहसास हुआ, फिर उसने पढ़ाई मे कड़ी मेहनत करने का निश्चय किया, सुबह का भूला शाम को घर आ जाये तो उसे भूला नही कहते।
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