(क) “हम कठोरता से भागते हैं, भद्देपन से मुख मोड़ते हैं, इसीलिए सच से
भी भागते हैं।"
(ख) “सुंदर सृष्टि! सुंदर सृष्टि, हमेशा बलिदान खोजती है, बलिदान ईंट का
हो या व्यक्ति का ।"
(ग) "अफसोस, कंगूरा बनने के लिए चारों ओर होड़ा-होड़ी मची है, नींव
की ईंट बनने की कामना लुप्त हो रही है!" plz it's urgent
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6 is a good one and I love the idea of the day my dear sis happy family and
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(क)उत्तर: प्रस्तुत पंतिया हमारी पाठ्य पुस्तक आलोक भाग 2 के गद्य खंड के 'नीवं की ईंट ' से ली गई है, इसका निबंधकार रामवृऋ बेनीपुरी जी हैं।
प्रस्तुत पंक्तियां में हम अपने कुछ न समझ कर इन से दूर रहने को कोशिश करती है।
निबंधकार ने हम लोगों को ये कहना चाहते है क्यों कि हमेशा सच्चाई की मन-भावनाओन के साथ अपने रहना चाहिए।
कभी किसी से बातों पर वकीन करके इसके पीछे भागना बेकार की बात है। सत्य कठोर तथा भद्दा होता है। मनुष्य इसी भद्देपन से भागता है। इसलिए वह सच से भी भागते है।
विशेष: इस पंति में बेनीपुरी जी के प्रतीकार्थ का छाया दिखाई पड़ती है।
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