(क) हरिहर काका ठाकुरबारी के महंत तथा अपने कुटुंब के सदस्यों से किस प्रकार परेशान थे ?
(ख) प्रेम न जाने जात - पात, प्रेम न जाने खिचड़ी - भात -- इस पंक्ति का आशय 'टोपी शुक्ला' नामक पाठ के आधार पर व्यक्त करें I
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(क)
हरिहर काका ठाकुरबारी के महंत तथा अपने कुटुंब के सदस्यों से उनकी लालची प्रवृत्ति के कारण परेशान थे। ठाकुरबारी के महंत हों या उनके परिवार के सदस्य, सब उनकी संपत्ति हड़पना चाहते थे।
ठाकुरबारी के महंत का व्यवहार हरिहर काका के प्रति पहले तो बहुत अच्छा था। वो हरिहर काका की जमीन को हड़पना चाहता था। इसलिए उसने हरिहर काका के प्रति यथासंभव मिठास भरा व्यवहार किया। लेकिन जब हरिहर काका उसके जब चापलूसी भरे व्यवहार के झांसे में नहीं आए तो वह हिंसक हो उठा और हरिहर काका के प्रति उसका व्यवहार कठोर हो गया। वह अलग अलग अनुचित तरीकों से हरिहर काका की संपत्ति अपने नाम कराने का प्रयत्न करने लगा।
हरिहर काका के पारिवारिक सदस्य अर्थात उनके भाई आदि भी उनकी संपत्ति के लोभी है और वह हरिहर काका की संपत्ति के लोभ में ही हरिहर काका की खातिरदारी करते थे। वरना उन्हें हरिहर काका की दुख-तकलीफ से उन्हें कोई वास्ता नहीं था। इस तरह हरिहर काका ठाकुरबारी के महंत और अपने कुटुंब के सदस्यों से अपनी संपत्ति के प्रति उनके लोभ के कारण परेशान थे।
(ख)
‘प्रेम न जाने जात-पात, प्रेम न जाने की खिचड़ी-भात’ इन पंक्तियों का आशय यह है कि प्रेम जात-पात धर्म देखकर नहीं किया जाता है। जब किसी से प्रेम हो जाता है तो यह नहीं देखा जाता कि वह किस जाति, किस धर्म, किस वर्ग का है, अमीर है या गरीब है। बल्कि जिससे प्रेम करना होता है उससे प्रेम हो ही जाता है। प्रेम जात-पात और धर्म तथा अमीरी-गरीबी की सीमाओं से परे होता है।
उसी तरह जब जोरों की भूख लगी हो तो, मनुष्य कोई भी प्राणी यह नहीं देखता कि उसके सामने घी से चुपड़ी हुई रोटी है या सूखी रोटी, स्वादिष्ट पकवान हैं या सादा खिचड़ी। जोरों की भूख लगने पर आदमी को सादा खिचड़ी भी स्वादिष्ट पकवान की तरह लगती है।