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Explanation:
राजस्थान के प्रमुख लोकगीत
राजस्थानी लोकगीतों के प्रकाशित संग्रह-
खेताराम माली- मारवाड़ी गीत संग्रह
सरदारमल थानवी- मरूधर गीत माला व घुड़ले के 9 गीत
विद्याधरी देवी- असली मारवाड़ी गीत संग्रह
विद्वान्त्रय – राजस्थान के लोकगीत
मेहता रघुनाथ सिंह- जैसलमेरिया संगीत रत्नाकार
जगदीश सिंह गहलोत- मारवाड़ के ग्राम गीत
सूर्यकरण पारीक- राजस्थान के लोकगीत
पुरूषोतम लाल मेनारिया- राजस्थानी लोकगीत
अमृतलाल माथुर- रामरस
बलदेव पुरोहित- जैसलमेर संगीत सुधा
बैजनाथ केडिया – मारवाड़ी गीत संग्रह
रामनरेश त्रिपाठी- मारवाड़ के मनोहर गीत
केसरिया बालम आओ नी पधारो म्हारे देश-
यह राजस्थान का राज्य गीत हैं, तथा यह राजस्थान का रजवाड़ी गीत हैं। राजस्थान में यह गीत मरू प्रदेश का प्रसिद्ध हैं तथा यह गीत प्रेमी के इन्तजार में गाया जाता हैं।
इस गीत को पहली बार उदयपुर निवासी मांगी बाई ने गाया था जबकि सर्वाधिक बार अल्लाह जिल्ला बाई ने गाया था।
झरोवा गीत –
प्रेमी के वियोग में गाया जाने वाला यह गीत भी जैसलमेर का प्रसिद्ध हैं।
मूमल-
मूमल जैसलमेर के लोद्रवा की राजकुमारी के इतिहास की प्रेम कहानी हैं।
इस गीत में मूमल का नखशिख वर्णन हैं तथा यह गीत जैसलमेर में सर्वाधिक गाया जाता हैं।
गोरबन्द –
यह गीत मारवाड़ के शेखावाटी क्षेत्र में गाया जाता हैं, इस गीत में ऊंट के शृंगार का वर्णन किया जाता हैं। यह गीत मरूस्थलीय क्षेत्रों में सर्वाधिक गाया जाता हैं।
विशेष – गोरबन्द ऊंट के गले का आभूषण भी होता हैं। ऊंट को राज्य पुश का भी दर्जा मिल चुका है।
कुरजां गीत-
कुरजां सारस जैसा सुन्दर पक्षी होता हैं, इस गीत के माध्यम से मारवाड़ क्षेत्र में वर्षा ऋतु में प्रेमी को सन्देश भेजा जाता हैं।
घूमर या लूर गीत –
यह गीत गणगौर के साथ- साथ मांगलिक अवसरों पर मारवाड़ क्षेत्र में सर्वाधिक गाया जाता हैं।
इस गीत का प्रचलन बूंदी व कोटा क्षेत्र में गणगौर के अवसर पर भी होता हैं।
घुड़ला गीत –
घुड़ला त्योंहार के अवसर पर चैत्र माह में कन्याओं द्वारा मारवाड़ क्षेत्र में सर्वाधिक गाया जाता हैं।
धंसौ गीत –
होरी की तर्ज पर गाया जाने वाला यह लोकगीत मारवाड़ क्षेत्र में सर्वाधिक गाया जाता हैं।
मरसिये-
मारवाड़ क्षेत्र में प्रभावशाली व्यक्ति की मृत्यु होने पर यह गीत गाया जाता हैं।
कांगसियो-
पश्चिमी राजस्थान में बालों के शृंगार का वर्णन गणगौर के अवसर पर इस गीत माध्यम से किया जाता हैं, कांगसिया कंघा को कहा जाता हैं जिससे बाल संवारे जाते हैं।
ओळयू-
विवाह के अवसर सम्पूर्ण राजस्थान में वधू की विदाई के समय वधू पक्ष की ओर से गाया जाने वाला यह विदाई गीत हैं।
लावणी गीत-
यह गीत सम्पूर्ण राजस्थान में नायक द्वारा नायिका के बुलाने के लिए गाया जाता हैं। लावणी का अर्थ भी बुलाना ही होता हैं।
शृंगारिक तथा भक्ति संबंधी लावणिया अधिक प्रसिद्ध हैं इनके अलावा राजस्थान में भृतहरी, मोरध्वज, सेउसमन की लावणियां भी प्रसिद्ध हैं।
पावणा-
दामाद के ससुराल आने पर स्त्रियां भोजन करवाते वक्त पावणा गीत गाती हैं।
कागा-
कागा का अर्थ कौवा होता हैं, प्रिया इसे अपने प्रियतम के आने का शगुन मानती हैं तथा कौऐ को प्रलोभन देकर उड़ने को कहती हैं।
रातीजगा-
शुभ अवसर पर या मनौती मनाने पर रात भर जागकर देवताओं की याद में गाये जाने वाला यह गीत हैं, राजस्थान में यह माना जाता हैं कि रातीजगा देने पर देवता मनौती पूरी करते हैं।
हरजस-
इस लोक गीत में राम व कृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया जाता हैं।
कुकड़ी गीत-
यह रात्रिकालीन जागरण का अन्तिम गीत होता हैं।
विनायक गीत-
मांगलिक कार्यों का शुभारम्भ करने से पहले विनायक जी की पूजा करते वक्त यह गीत गाया जाता हैं।
जच्चा गीत-
यह गीत पुत्र के जन्म के अवसर पर गाया जाता हैं।
तेजा गीत –
किसानों द्वारा खेती में फसल बोते वक्त यह गीत गाया जाता हैं।
तेजाजी के मेले पर तेजा टहर गीत गाया जाता हैं।
चाक गीत-
विवाह के समय स्त्रियों द्वारा कुम्हार के घर जाकर चाक पूजते वक्त यह गीत गाया जाता हैं।
फलसड़ा-
विवाह के अवसर पर अतिथियों के आगमन पर यह गीत गाया जाता हैं।
पीठी या उबटन गीत-
विवाह के अवसर पर वर वधू को नहलाने से पूर्व पीठी (हल्दी) लगाई जाती हैं, पीठी लगाते वक्त यह गीत गाया जाता हैं।
काजळियो-
विवाह के अवसर पर वर की आंखों में भाभी द्वारा काजल निकाला जाता हैं, उस समय काजळिया गीत गाया जाता हैं।
घोड़ी गीत-
वर निकासी के समय यह गीत गाया जाता हैं।
जला/जलाल/जलाया-
वधू पक्ष की स्त्रियों द्वारा बारात का डेरा देखने जाते वक्त यह गीत गाया जाता हैं।
सीठणे-
विवाह के अवसर गीतों के माध्यम से गालियां दी जाती हैं उन्हें सीठणे कहते हैं ।
दुपट्टा-
दूल्हे की सालियों द्वारा यह गीत गाया जाता हैं।
कुकड़लू-
दूल्हा जब तोरण पर पहुंचता हैं तो वहाँ पर वधू पक्ष की स्त्रियां यह गीत दूल्हा के स्वागत हेतु गाती हैं।
बन्ना-बन्नी-
शादी के अवसर पर गाया जाने वाला यह राजस्थानी भाषा का सबसे प्रसिद्ध लोकगीत हैं।
हिचकी-
यह गीत राजस्थान में मेवात के अलवर क्षेत्र में सर्वाधिक अपने नजदीकी की याद आने पर गाया जाता हैं।
चिरमी-
चिरमी एक पौधे का नाम होता हैं। वधू द्वारा अपने ससुराल में भाई या पिता की प्रतीक्षा करने पर यह गीत गाया जाता हैं।
बिछूड़ा-
यह गीत राजस्थान में हाड़ौती क्षेत्र का लोकप्रिय हैं।
इस गीत में पत्नी को बिच्छू काट लेता हैं तथा पत्नी अपने पति को इस गीत के माध्यम से दूसरा विवाह करने का सन्देश देती हैं।
पंछीड़ा-
यह गीत हाड़ौती व ढ़ूढ़ाड़ क्षेत्र में मेलों के अवसर पर गाया जाता हैं।
कामणा गीत