कुंई का मुंह छोटा क्यों रखा है?
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कुंई का मुँह छोटा रखने के तीन महत्त्वपूर्ण कारण है-
रेत में जमी नमी से पानी की बूँदें बहुत धीरे-धीरे रिसती है| दिनभर में एक कुंई मुश्किल से इतना ही पानी जमा कर सकती है कि उससे दो तीन घड़े ही भरें| कुंई के तल पर पानी की मात्रा इतनी कम होती है कि यदि कुंई का व्यास बड़ा हो, तो कम मात्रा का पानी ज्यादा फ़ैल जाएगा और तब उसे ऊपर निकाला नहीं जा सकेगा| छोटे व्यास की कुंई में धीरे-धीरे रिसकर आ रहा पानी दो-चार हाथ ऊपर तक आ जाता है| इस पानी को बाहर निकालना सरल हो जाता है और इस पानी को निकालने के लिए छोटी बाल्टी या चड़सका उपयोग किया जाता है|
कुंई के घेरे का इन क्षेत्रों में पड़ने वाली तेज गर्मी से भी संबंध है| बड़ा मुँह होने पर फैला हुआ पानी वाष्प बनकर उड़ जाएगा| इसलिए कुंई का मुँह छोटा रखा जाता है, जिससे पानी को वाष्प बनाने से रोका जा सके|
कुंई के पानी को साफ़ रखने के लिए उसे ढँककर रखना जरूरी होता है| छोटे मुँह को ढँकना सरल होता है|हरेक कुंई पर लकड़ी के ढक्कन लगे होते हैं या फिर कहीं-कहीं खास की पट्टी की तरह घास-फूस या छोटी-छोटी टहनियों से बने ढक्कनों का भी उपयोग किया जाता है|