कोई न छायादार पेड़ से कवि का क्या मतलब है?
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कोई न छायादार" के बाद ही कवि ने पैराग्राफ बदल दिया है । इसका माने है कि कवि "छायादार" शब्द से दुहरा काम लेना चाहते हैं । छायादार का माने छाया देनेवाला, जैसे दिलदार का माने दिल देनेवाला । मजदूरिन के सर पर कोई छाया देने वाला नहीं है, अर्थात कोई व्यक्ति सहारा देनेवाला नहीं है ।
'कोई ना छायादार पेड़' से कवि का मतलब यह है कि पत्थर तोड़ने वाली स्त्री जिस जगह बैठी है, वहाँ पर कोई भी आश्रय नहीं है, कोई भी छाया नहीं है। ना कोई पेड़ है ना कोई अन्य छायादार सहारा है। वह स्त्री कड़ी धूप में बैठी हुई पत्थर तोड़ रही है। यह उसकी गरीबी की व्यथा है।
व्याख्या :
'वह तोड़ती पत्थर' कविता में कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला इलाहाबाद की एक सड़क के किनारे कड़ी धूप में पत्थर तोड़ने वाली की दयनीय दशा का वर्णन कर रहे हैं। वे कविता में कहते हैं, के वह गरीब स्त्री सड़के किनारे कड़ी धूप में बैठी हुई पत्थर तोड़ रही है। सामने ऊँची-ऊँची इमारतें है, लेकिन उस स्त्री के लिये कोई छायादार स्थान नही है।
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