कोई न छायादार पेड़' से कवि का क्या मतलब है?
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आप जानते हैं कि 'निराला' सिद्ध कवि हैं। वे शब्दों और वर्ण्यवस्तु का चयन विशेष आशय से करते हैं। जैसे इन्हीं पंक्तियों में देखिए : "कोई न छायादार/पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार श्याम तन, भर बँधा यौवन/नत नयन प्रिय, कर्म-रत मन"। ... कवि प्रारंभ के वाक्य में ही कहता है – 'वह तोड़ती पत्थर ।
कोई न छायादार पेड़' से कवि का क्या मतलब है ?
'कोई ना छायादार पेड़' से कवि का मतलब यह है कि पत्थर तोड़ने वाली स्त्री जिस जगह बैठी है, वहाँ पर कोई भी आश्रय नहीं है, कोई भी छाया नहीं है। ना कोई पेड़ है ना कोई अन्य छायादार सहारा है। वह स्त्री कड़ी धूप में बैठी हुई पत्थर तोड़ रही है। यह उसकी गरीबी की व्यथा है।
व्याख्या :
'वह तोड़ती पत्थर' कविता में कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला इलाहाबाद की एक सड़क के किनारे कड़ी धूप में पत्थर तोड़ने वाली की दयनीय दशा का वर्णन कर रहे हैं। वे कविता में कहते हैं, के वह गरीब स्त्री सड़के किनारे कड़ी धूप में बैठी हुई पत्थर तोड़ रही है। सामने ऊँची-ऊँची इमारतें है, लेकिन उस स्त्री के लिये कोई छायादार स्थान नही है। कवि के कहने का भाव ये है कि सारी सुख-सुविधायें केवल अमीरों के लिए ही है, गरीबों को तो बस शोषण और दुख-कष्ट ही मिलते हैं।
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