कैकेई का अनुताप कविता की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए
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यहाँ कवि ने कैकेयी के पश्चाताप में उपस्थित लोगों व प्रकृति को भी उनकी संवेदना का हिस्सा बनाने का भाव व्यक्त किया है। 6 क्या कर सकती थी, मरी मन्थरा दासी. मेरा ही मन रह सका न निज विश्वासी। वे ज्वलित भाव थे स्वयं मुझी में जागे।
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