कालिदासेन रचित ग्रन्थानां संख्या
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भारतीय आर्यभाषा के मध्ययुग में जो अनेक प्रादेशिक भाषाएँ विकसित हुई उनका सामान्य नाम प्राकृत है और उन भाषाओं में जो ग्रंथ रचे गए उन सबको समुच्चय रूप से प्राकृत साहित्य कहा जाता है। विकास की दृष्टि से भाषावैज्ञानिकों ने भारत में आर्यभाषा के तीन स्तर नियत किए हैं - प्राचीन, मध्यकालीन और अर्वाचीन। प्राचीन स्तर की भाषाएँ वैदिक संस्कृत और संस्कृत हैं, जिनके विकास का काल अनुमानत: ई. पू. 2000 से ई. पू. 600 तक माना जाता है। मध्ययुगीन भाषाएँ हैं - मागधी, अर्धमागधी, शौरसेनी, पैशाची भाषा, महाराष्ट्री और अपभ्रंश। इनका विकासकाल ई. पूर्व 600 ई. 1000 तक पाया जाता है। इसके पश्चात्, हिंदी, गुजराती, मराठी, बँगला, आदि उत्तर भारत की आधुनिक आर्यभाषाओं का विकास प्रारंभ हुआ जो आज तक चला आ रहा है।
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Kālidāsa (Devanagari: कालिदास; fl. 4th–5th century CE) was a Classical Sanskrit author who is often considered ancient India's greatest playwright and dramatist. His plays and poetry are primarily based on the Vedas, the Rāmāyaṇa, the Mahābhārata and the Purāṇas.[1] His surviving works consist of three plays, two epic poems and two shorter poems.
Kalidasa
A 20th century artist's impression of Kālidāsa composing the Meghadūta
A 20th century artist's impression of Kālidāsa composing the Meghadūta
Occupation
Poet, Dramatist
Language
Sanskrit, Prakrit
Period
c. 4th–5th century CE
Genre
Sanskrit drama, Classical literature
Subject
Epic poetry, Puranas
Notable works
Kumārasambhavam, Abhijñānaśākuntalam, Raghuvaṃśa, Meghadūta, Vikramōrvaśīyam