कोलम और अल्पना में क्या अंतर है? रेखाचित्र बनाकर स्पष्ट करें।
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कोलम और अल्पना फर्श को सजाने की भिन्न-भिन्न पद्धतियां हैं, जो अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग नाम से जानी जाती हैं।
कोलम दक्षिण भारत में फर्श को सजाने की एक पद्धति है। कोलम दक्षिण भारत में मुख्य रूप से इस विश्वास के साथ मनाया जाता है कि इससे घर और परिवार में सुख-समृद्धि आएगी। कोलम मोटे चावल आदि की सहायता से बनाया जाता है। उन मोटे चावलों को अक्सर पक्षी आदि चुगने चले आते हैं, इससे ऐसा माना जाता है कि पक्षियों के रूप में घर में सुख समृद्धि आ गई है। इसके साथ ही कोलम में जिन डिजायनों को बनाया जाता है, वे इस विश्वास के साथ बनाई जाती है कि इनसे घर की देहरी पवित्र हो गई है और घर भी पूरी तरह से बाहर के अशुभ खतरों से मुक्त हो गया है।
कोलम बनाने के पीछे दक्षिण भारत में यह मान्यता है कि यदि देहरी को कोलम बनाकर पवित्र ना रखा जाए तो अशुभ और अहितकारी शक्तियां घर में घुस आएंगी और परिवार की सुख-शांति को नष्ट कर देंगी। कोलम की रचना का मुख्य आधार बिंदिया होती हैं, जिन्हें पुल्ली कहते हैं। इनको आपस में जोड़कर तरह के डिजाइन और नमूने बनाए जाते हैं।
अल्पना बंगाल में मांगलिक अवसरों जैसे कि तीज-त्योहारों या धार्मिक उत्सवों पर घर के सामने बनाई जाने वाली डिजाइन है। इस डिजायन को बनाने के लिए उंगली के चारों ओर कपड़े का छोटा सा टुकड़ा लपेटकर उंगली को भीगे हुए चावलों के पानी में डुबोकर बनाया जाता है। इस तरह की डिजाइनों के अनेक प्रकार होते हैं जो अलग-अलग तरह की धार्मिक क्रियाओं से जुड़े होते हैं। विवाहिता द्वारा बनाए जाने वाले डिजाइन नारी व्रत तथा कुंवारी कन्याओं द्वारा बनाए जाने वाले डिजाइन कुमारी व्रत कहे जाते हैं।
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पाठ - 5 : “ग्राफिक डिजायन की स्वदेशी परंपराएँ”
विषय : ग्राफिक डिजायन - एक कहानी (इकाई-II : ग्राफिक डिजायन और समाज) [कक्षा - 11]
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