कोमल मारे यहां पर गोली खा खाकर करिया उनके लिए गिराना थोड़ी आकर आशाओं से भरे हिर्दय भी छीन लूंगा अपने प्रिय परिवार देश से भी नहीं कुछ कर लिया यहां खिली इसलिए चढ़ाना करके उनकी याद आशु की गोश्त बहाना तड़प तड़प कर वृद्ध मारे हैं गोली खाकर शुष्क पुष्प कुछ कहां गिरा है देना तो मां का इस कविता में किस रस की अभिव्यक्ति हुई है
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Explanation:
कोमल मारे यहां पर गोली खा खाकर करिया उनके लिए गिराना थोड़ी आकर आशाओं से भरे हिर्दय भी छीन लूंगा अपने प्रिय परिवार देश से भी नहीं कुछ कर लिया यहां खिली इसलिए चढ़ाना करके उनकी याद आशु की गोश्त बहाना तड़प तड़प कर वृद्ध मारे हैं गोली खाकर शुष्क पुष्प कुछ कहां गिरा है देना तो मां का इस कविता में किस रस की अभिव्यक्ति हुई है
Answer:
१
स्टेशन के अंत से कुछ ग़ज आगे
कई परिवार अपने अपने क्वार्टर्स के बाहर
खटियाओं पर सो रहे हैं
नींद से लदीं रेलें
ऊंघती, घरघरातीं, स्वप्नाहूत सीं
दबे पहियों प्रवेश करतीं हैं स्टेशन में
बिना उनकी नींद में ख़लल डाले
२
जीन्स के पाँयचों में घुसते पैरों की भांति
रेल गुजरती है शहर से
शहर की तड़क भड़क से विमुख
निहायत ही अनढके जीवन में
ब्लाउज-पेटीकोट पहने कपडे सुखातीं औरतें
जो मोहल्ले भर से सारी सुबह लड़-झगड़ कर थक चुकीं
चार दिन में एक बार आने वाले पानी के लिए
ऊर्जा से लदे मैदान को देखते फिसड्डी बच्चे
जिनकी कविताएँ कोई नहीं पढता
और जिनके घरोंदों को उनके छोटे भाइयों ने पेशाब करके ढूह दिया
अचानक आए अंधड़ में उड़ते टैण
उड़ती थैलियों के कौतुहल भरे हुजूम
जो एक ही तंत्र के घटकों की लावारिस असमान लाशें हैं
गाँव के बाहर बूढ़ी गायों के सड़ते कंकाल
जिनकी बोटियाँ खींचने वाले गिद्धों के गुर्दे
उनमें जमा डाईक्लोफीनेक से खराब हो गए
यहीं आ मिलते हैं अन्दर मोड़े किनारों के टांके
जेबों के फैलाव
एक-दूसरे को बेतहाशा चूमते जोड़े
जो रंगों सने डंडों से भय खा कर आ छुपे हैं उजाड़ में
एक-दूसरे को मलते हैं अपने-आप पर
जैसे सड़ते हुए काई-सने पानी से भरे नासूर में ख़ुद को धोते हैं गडूरे
यहाँ घुट-घुट कर रेंगता है जीवन बड़ी निपुणता के साथ
बहुत ही पतली गलियों में
जिसका होना अनर्थक है इसके बिना