History, asked by mahirasingh633, 9 months ago

क. नीचे दिये प्रश्नों के उत्तर दें : (3-4 लाइनों में)
1. लुई 14वें का 'मैं ही राष्ट्र हूं' बूबों राजवंश के किस चरित्र को प्रकाशित करता है ?​

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Answered by Piyush4243
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Answer:चौदहवाँ लुई (१६३८-१७१५ / Louis XIV) एक राजा था जिसने १६४३ से आजीवन फ्रांस पर शासन किया। उसका शासन ७२ वर्ष एवं ११० दिनों का था जो यूरोप के इतिहास में किसी भी राजा के शासनकाल से बड़ा है।

१५ मई १६४३ को तेरहवें लुई का देहांत हो गया। अब उसका पुत्र लुई चौदहवाँ राजसिंहासन पर बैठा। उस समय उसकी आयु केवल पाँच वर्ष की थी। रिशल्यू के उपरांत राज्य की बागडोर कार्डिनल मेज़रिन के हाथ में आ गई थी। मेज़रिन ने रिशल्यू की ही नीति को पूर्णत: स्थायी रखा। चौदहवें लुई के राज्यारोहण के समय फ्रांस की सेनाएँ तीस वर्षीय युद्ध में जर्मनी में लड़ने में व्यस्त थीं। फिर भी फ्रांस में विद्रोहियों का सफलतापूर्वक दमन किया गया। चतुर्थ हेनरी व रिशल्यू दोनों ने फ्रांस में स्वेच्छाचारी राजसत्ता जमाने का यथेष्ट प्रयत्न किया था १६६१ में मेजरिन की मृत्यु के उपरांत चौदहवें लुई ने इस बात की घोषणा की कि वह स्वयं राज्य करेगा और मंत्रियों की सहायता की उसे कोई आवश्यकता नहीं है। लुई का कहना था, 'मैं ही राष्ट्र हूँ।' लुई के समय में फ्रांस के सर्वसाधारण को इस बात पर विश्वास दिलाया गया कि मनुष्य जाति के लाभ के लिए ही भगवान राजा को अपना प्रतिनिधि बनाकर भेजता है।

चौदहवें लुई के तत्कालीन वित्तमंत्री कोलबेर ने देश की आर्थिक उन्नति की जिसके परिणामस्वरूप युद्ध के साधन उपलब्ध हुए। लुई (१६६१ से १७१३ तक), फ्रांस की सीमाएँ बनाने के लिए यूरोप में युद्ध करता रहा। इनके डेवोल्यूशन (Devolution) का युद्ध (१६६७-१६६८), डचश् युद्ध (१६७२-१६७८), ऑग्सबर्ग की लीग का युद्ध (१६८९-१६९७) और स्पेन के उत्तराधिकार का युद्ध (१७०१-१७१३) प्रसिद्ध हैं। अंत में इन युद्धों से फ्रांस की आर्थिक दशा बहुत बिगड़ गई।

ऐसा होते हुए भी चौदहवें लुई के समय में फ्रांस का सांस्कृतिक अभ्युदय कुछ आश्चर्यजनक गति से हुआ। उसके समय के कला कौशल और सांस्कृतिक श्रेष्ठता का सिक्का यूरोप के हृदय पर अब भी जमा हुआ है। पेरिस से बारह मील दूर वर्साय में उसने अपने रहने के लिए एक राजप्रासाद बनवाया था। प्रासाद की लागत उस समय लगभग इक्कीस करोड़ रुपए था। वर्साय भर में बाग, बगीचे, झरने, छोटे तथा बड़े प्रासाद ही दिखाई देते थे।

कला क्षेत्र में भी फ्रांस को अपूर्व मर्यादा प्राप्त हुई। कार्ने (Corneille, १६०६-१६८४) और मौल्येअर (१६२२-१६७३) प्रसिद्ध नाटककार थे। मडाम डी सेवीनये (Sevigne) (१६२६-१६९६), ला फॉनटेन (१६२१-१६९५) और रेसीन (१६३९-१६९९) के लेखों और शब्दों के प्रयोग ने फ्रेंच भाषा को समस्त यूरोप में सर्वप्रिय बना दिया था। इंग्लैंड के खाने के सूचीपत्र (menu) आज तक फ्रेंच में छपते हैं। फ्रांस को यह गौरव १४वें लुई के समय से ही प्राप्त हुआ।

शिल्प विद्या, मूर्तिकला, चित्रकला तथा संगीत में फ्रांस के कलाकारों ने यूरोप की कलाशैली पर बहुत प्रभाव डाला। फ्रांस की राजनीतिक श्रेष्ठता के कारण फ्रांस की कला को और भी प्रतिष्ठा मिली। इस सांस्कृतिक उन्नति के कारण उसका राज्यकाल फ्रांस का स्वर्णयुग बन गया। उसका राज्यकाल यूरोपीय इतिहास में 'चौदहवें लुई का युग' कहलाता है।

लुई जितना प्रतापी राजा था, उतना ही दु:खद उसका अंत हुआ। अपने अंतिम दिनों में बूढ़ा और क्षीण लुई, स्पष्ट देख रहा था, कि उसके युद्धों के परिणामस्वरूप हुई क्षति के कारण उसकी प्रजा दु:खी है, कृषक भूखे हैं और मध्यवर्ग के लोग निर्धन होते चले जा रहे हैं। लुई का केवल एक पुत्र था। सम्राट् ने उसे शिक्षा देने का भरसक प्रयत्न किया परंतु वह अनपढ़ ही रहा। १ सितंबर, १७१५ को चौदहवें लुई का देहांत हुआ।

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